कुछ न कुछ लिखते रहना चाहिए। यही एक चीज है जो आपको 'जिंदा' रहने का अहसास दिलाती है
और जिसे सालों-साल पढ़ा जा सकता है। बाकी शोर तो हर तरफ मचा हुआ है। लिखने का मेरा
मकसद जीने की इस लंबी ड्यूटी को सुलझाना और दिलचस्प बनाना है। अगर औरों के साथ पेश
आने की आपकी तमीज़ इस बात पर निर्भर करती है कि सामने वाले का ओहदा क्या है,
उसका मज़हब क्या है या उसके पास कितनी दौलत है, तो मेरा यह ब्लॉग आपके लिए भी है।
कोशिश करता हूं, आपको जोड़ सकूं उन कहानियों से जिनके किरदार हम कभी न कभी जीते हैं, इस
बात से बेखबर कि इस दौरान हम हर पल एक कहानी रच रहे हैं...लिखना स्वयं के करीब और स्वयं
को खोजने का प्रयास है भीतर के इंसान का शब्दों के माध्यम से खुली हवा में ज़िंदा पल जीने की
जिजीविषा लिखने के उपरान्त मिले संतोष का अवचेतन मुक्ति से कम नहीं है कुछ बुनियादी भाव
और धारणाओं के प्रति हमारा नकारात्मक सोच ही हमें आगे नहीं बढ़ने दे रहा है। हर वक्त याथर्थ
के धरातल को ही टटोलना जरुरी नहीं है, कुछ पल ऐसे ही दिनों के बहाने कल्पना के सृजनलोक में
विचरण कीजिये। कभी कभी कुछ कहने का मन करे तो कह डालना चाहिये बस इसी बात से प्रेरित
होकर यह ब्लॉग शुरु किया है. मैं न तो सफल हूँ ना ही असफल और ना ही जीवन को इन पैमाने
पर आँकता हूँ. किन्तु कुछ कह सकने का साहस तो होना ही चाहिये जो कि जीवन जीने की एक
कसौटी है. मेरा परिचय मात्र इतना है कि मैं एक पथिक हूँ जिसने अभी अभी यात्रा शुरु तो की है
किन्तु जिसे ना तो मंजिलों की झलक है और ना ही रास्ते का पता है।
और जिसे सालों-साल पढ़ा जा सकता है। बाकी शोर तो हर तरफ मचा हुआ है। लिखने का मेरा
मकसद जीने की इस लंबी ड्यूटी को सुलझाना और दिलचस्प बनाना है। अगर औरों के साथ पेश
आने की आपकी तमीज़ इस बात पर निर्भर करती है कि सामने वाले का ओहदा क्या है,
उसका मज़हब क्या है या उसके पास कितनी दौलत है, तो मेरा यह ब्लॉग आपके लिए भी है।
कोशिश करता हूं, आपको जोड़ सकूं उन कहानियों से जिनके किरदार हम कभी न कभी जीते हैं, इस
बात से बेखबर कि इस दौरान हम हर पल एक कहानी रच रहे हैं...लिखना स्वयं के करीब और स्वयं
को खोजने का प्रयास है भीतर के इंसान का शब्दों के माध्यम से खुली हवा में ज़िंदा पल जीने की
जिजीविषा लिखने के उपरान्त मिले संतोष का अवचेतन मुक्ति से कम नहीं है कुछ बुनियादी भाव
और धारणाओं के प्रति हमारा नकारात्मक सोच ही हमें आगे नहीं बढ़ने दे रहा है। हर वक्त याथर्थ
के धरातल को ही टटोलना जरुरी नहीं है, कुछ पल ऐसे ही दिनों के बहाने कल्पना के सृजनलोक में
विचरण कीजिये। कभी कभी कुछ कहने का मन करे तो कह डालना चाहिये बस इसी बात से प्रेरित
होकर यह ब्लॉग शुरु किया है. मैं न तो सफल हूँ ना ही असफल और ना ही जीवन को इन पैमाने
पर आँकता हूँ. किन्तु कुछ कह सकने का साहस तो होना ही चाहिये जो कि जीवन जीने की एक
कसौटी है. मेरा परिचय मात्र इतना है कि मैं एक पथिक हूँ जिसने अभी अभी यात्रा शुरु तो की है
किन्तु जिसे ना तो मंजिलों की झलक है और ना ही रास्ते का पता है।