जन्म - जन्म के साथी

 बादलों की अठखेलियों के चलते वातावरण में हल्की सिहरन है। काली चाय बनाने के बाद तुमको खत लिखने बैठा हूँ।बार-बार मन रोमांटिक होना चाह रहा है, लेकिन दिमाग की गुत्थ्यिं मुझे उलझाए हुए हैं। मन चाहता है उड़कर तुम्हारे पास पहुंचूं और तुम्हें बाहों में उठाकर पहाड़ी की पगडंडियों पर दौड़ता फिरूं। जितना तुम्हें मैं प्यार करता हूं, उससे ज्यादा तुम्हारा सम्मान करता हूं। खत के जरिए पहले तुम मेरा सम्मान स्वीकार करो, इसके बाद ढेर सारा प्यार...चुम्बनों की फुलझड़ी...काली घटाओं से लहराते बालों पर, तुम्हारी हिरनी सी आंखों...गुलाब की पंखुड़ियों से होठों...और उस जगह भी एक चुम्बन, जहां तुम्हारे सीने में मेरा दिल धड़कता है। कुछ गहरे चुम्बन तुम्हारी घिसी-पिटी लाल चूड़ियों, बदरंग नाखूनों, खुरदुरी हथेलियों, मेरी फकीरी का भार उठाने वाले तुम्हारे मजबूत कन्धों, और...और पनचक्की की तरह कभी न थकने वाली तुम्हारी बेवाई भरी एड़ियों पर भी। ...यह देखो!, मेरे रोम-रोम में रोमांस और रोमांच भर रहा है। मेरी धड़कन बढ़ने से देखो, अक्षरों की बनावट बिगड़ रही है।

तुम हर महीने मेरा खर्च भेजती हो। मैं आर्थिक और सामाजिक रूप से तुम पर ही निर्भर हूं। इस तरह देखा जाए तो तुम मेरा प्यार, जीवनसाथी, गार्जियन और दोस्त...सबकुछ हो। ...समाज में कहा जाता है कि गृहस्थी रूपी गाड़ी में पति और पत्नी पहिया होते हैं। परंतु हमारे घर में तो एक पहिए पर गृहस्थी की गाड़ी चल रही है। तुम जीती-जागती मदरइंडिया हो। मेरे दोस्त  दूसरे-तीसरे महीने अपनी पत्नियों के लिए खुशियां खरीदकर लाते हैं, लेकिन मैं तो ‘ठन-ठन गोपाल’ हूं। मेरा कॅरियर का सपना खजूर का पेड़ बन गया है। वह न परिवार को छाया दे पा रहा है, और न मुझे संतोष...। सोचता हूं, अगर मैं मजदूरी करता तो भी इतना नकारा न होता। तुम मानो या न मानो, मैं असफल पति और नालायक पिता हूं। बाबूजी की नजर से देखूं तो असफल बेटा भी हूं। इस अवसाद भरे  अहसास को मन के घरौंदे में मैं नहीं रखना चाहता, लेकिन निकाल भी तो नहीं पा रहा हूं।

मैं भी चाहता हूं, वाल्मीकि की तरह नए सिरे से जिन्दगी की शुरुआत करूं। परंतु जब अपराधबोध मन के अंदर से किसी जिन्न की तरह बाहर निकलता है तो नए सपनों की बैलगाड़ी कई-कई बार पहले हिचकोलें खाती है, इसके बाद पलट जाती है। अब तो कोई आदर्श नहीं बचा जीवन में, मेरे कंधों पर कॅरियर की असफलता का बोझ   है। मेरे अंदर का अकेलापन, अपराधबोध और उनींदापन जल्द न दूर हुआ तो मैं पागल भी हो सकता हूं। मै मानता हूँ कि सिर्फ सेक्स और सुविधाओं का अंबार ही प्यार नहीं होता। ..हो सकता है, तुमको सेक्स और सुविधाओं की बहुत जरूरत न महसूस होती हो, लेकिन मैं तुम्हारा सानिध्य पाने के लिए छटपटा रहा हूं। हम सालों से नदी के दो किनारों पर बैठकर पति-पत्नी का धर्म निभाने का प्रयास कर रहे हैं, पहले तुम्हारी, कोचिंग फिर नॉकरी, पर जरा मेरे कलेजे से पूछो, कैसे यह सब झेला है। मैं सच कह रहा हूं। यह गृहस्थी हमारे प्रेम का मौलिक विस्तार है। मेरे लिए सेक्स और विलासिता के सामान ही प्रेम नहीं हैं, मैं  तुम्हारे पास आ जाता लेकिन क्या   गारंटी कि अपने प्यार के तमाम अंगों के कट जाने से मेरे वजूद का हरा-भरा पेड़ सूख नहीं जाएगा? ‘स्वाभिमान की सूखी रोटी अपराधबोध के मालपुए से ज्यादा मीठी होती है।’ ये ही सोचकर तुम से दुर रहना बेहतर लगता है। लेकिन तुम सोचो कुछ क्षण के सेक्स और सोने-चांदी के महंगे गहनों से हम प्रेम की उस कमी की भरपाई कर सकेंगे, जो यहां गांव में छूट जाएगा?’’  मैं बहुत ही नालायक बेटा, निकम्मा पति और फुग्गा पिता हूं। किसी जन्म में मैंने अच्छे कर्म किए थे जो ऐसी कर्मठ देवी मुझे पत्नी के रूप में मिलीं।’ ‘‘ओवर-ऐज हो रहा हू मैं करीब 30 साल से यहां धरती पर रह रहा हूँ। क्या किया है मैंने यहां, अभी तक मेरे पास एक किवंटल गेहूं और आटा रखने की भी जगह नहीं। बेरोजगारी के काकटेल से उपजे दुख के चलते अंदर ही अंदर घुट रहा हूं। अब तो तुमसे नजरें  मिलाने में भी भय अनुभव करता हूं।’’ बाऊजी क्या सोचेंगें  यही कि‘‘बेशर्म...गधे...बेवकूफ...लम्पट...नालायक! कमीनेपन की भी एक सीमा होती है। क्या तुम अपने लिये दो जून की रोटी की व्यवस्था नहीं कर सकते तुम्हारे जैसा गीदड़ कैसे पैदा हो गया?’’ अब मन कर रहा है  दुनियां वालों से माफी मांग लू ‘‘कितने साल से बेवजह जीये  जा रहा हूं, मेरी गलतियों और नादानियों को माफ कर दीजिए।’’ सब को हाथ जोड़ता हू। अब इस दुनियां में मेरा मन नहीं लगता । क्या तुम भी कभी ‘प्राउड एंड प्रोटेक्शन ऑफ हस्बैंड’ वाला अनुभव करोगी। ऐसे पति पर
इतराना लाजिमी है क्या?’ पता  है गांव में अक्सर जब बुजुर्ग महिलाएं मिलती हैं तो बहुओं पर लंबी चर्चा होती है। अब उनकी चर्चा का विषय मैं भी हो सकता हूँ । क्या गुफ़्तगू होगी उनकी, यही कि वो देखो वो रहा एक  लूजर इंसान, बीवी का पिछलग्गू, पत्नी के पल्लू के पीछे छुपे रहता है एक दिन बीवी बेलगाम हो जाएगी क्योंकि उसकी कमाई खाता है। बेशर्म आदमी पत्नी का पैर धोकर पी लिया करो, लोक तो सुधार ही गया, परलोक भी सुधर जाएगा।’ खैर यह तो मेरा कलेजा जानता है, या फिर ईश्वर, कि मैने कितना प्रयास किया था। अब थक सा गया हूँ। अब पहचान एक फुग्गे की सी बन के रह जानी है पत्नी की कमाई खाने वाला निठल्ला सुनील मोगा । यह सात फेरों वाला प्यार है, पत्नी जी ! इसकी फिलासफी और गणित दुनिया की सबसे कठिन फिलासफी और गणित है। इसमें दो जिन्दगियों की महत्वाकांक्षाएं, संभावनाएं और अहंकार के मटके आपस में उस तरह टकराते हैं, जिस तरह धरती की गहराई में भूकंप के लिए जिम्मेदार प्लेटें टकराती हैं। सात फेरों वाले प्यार में एक पहाड़ी घाटी भी होती है, जिसे ‘बेडरूम प्लीजर वैली’ कहते हैं। हर व्यक्ति की एक ‘एनर्जी लाइफ’ होती है। यह लाइफ करीब
30 साल की होती है। जो अब पूरी हो चुकी है पर पुरुषत्व का दंभ अभी बाकी है  शिव से बड़ा जोरू का गुलाम दुनिया में कौन है? पुजा और भक्ती में सहज से फर्क होता है वैसा ही अंतर अंहकार और स्वाभिमान में होता है ...ओह, अफसोस की कड़वाहट भरी चाशनी में डूबे इतने सारे मुद्दों ने मुझे इस तरह पहले कभी नहीं घेरा था।

सुनील मोगा ।।



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