स्वस्थ रहो,व्यस्त रहो,मस्त रहो

इंसान सम्मान चाहता है। इंसान प्रशंसा चाहता है। इंसान अपनी ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता है। न जाने कितनी चाहते लिए हुए तड़पता रहता है! जब उनको लगने लगता है कि मुझे महत्व नहीं दिया जा रहा है तब उटपटांग हरकते करने लग जाता है। जब फेसबुक जैसे माध्यम ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति का मंच प्रदान किया तो यहाँ भी ऐसे लोगों की भरमार हो गई। आलोचना के नाम पर गाली-गलौच की भाषा पर उतर आता है।उलटे-सीधे फोटो चिपकाने लग जाता है। लड़का लड़की बन जाता है।लड़की लड़का बन जाती है।हिन्दू मुसलमान बन जाता है। मुसलमान हिन्दू बन जाता है।फिर कॉपी पेस्ट टाइप कूड़ा फेंकने लग जाता है।क्या धर्म और क्या आस्था!क्या नीति और क्या नैतिकता!सारे शब्द ही खुद आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते है।अधकचरा ज्ञान पेलकर मति भ्रम का शिकार हो जाता है। थोथा ज्ञान चहुँ और तांडव लीला मचाने लगता है। विचारों का कोहराम गूंजने लगता है। ध्यानाकर्षण रोग ने सब मटियामेट कर दिया। हर कोई आभासी दुनियां में अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में लगा है। लिखो अपने दिल की गहराइयों में जाकर।लिखो ज्ञान के अथाह सागर में डुबकी लगाकर।लिखो अपने आप में मदमस्त होकर।क्या दुनिया का ध्यान खींचने में रखा है!अपने आप पर ध्यान देकर देखो,दुनिया छोटी नजर आने लगेगी।जिसको जो चाहिए अपने आप ढूंढ लेगा।
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