माननीयों का अजीब नकाब गजब का पहना जामा है।
गली-मोहल्लों में छाई ख़ामोशी
संसद में मचा हंगामा है।।
संसद की आज की कार्यवाही शुरू होते ही माननीयों ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।हर दल के भक्त अपने नेता के हंगामे को जायज व् दूसरे दल के नेताओं द्वारा किये जाने वाले हंगामें को नाजायज बता रहे है।बताना भी चाहिए क्योंकि राजनीतिक सक्रियता जारी रहनी चाहिए।जीवंत समाज में हर किसी को राजनीति करनी चाहिए ताकि छुपे हुए मुद्दे व् राजनीति के वेश में छुपे गुंडे-मवालियों का भी पता चलता रहे । रोज-रोज का हंगामा देखकर जनता जागरूक हो रही है।जनता को अपने नेताओं के बारे में जानने का पूरा हक है।अगर सबकुछ बंद कमरों में होने वाली सौदेबाजियां संसद में भी होने लग जाएगी तो जनता को पता ही नहीं चलेगा कि आखिर उनके नेताजी जीतकर दिल्ली जाते है तो पांच साल तक करते क्या है? बड़ी ईमानदारी के साथ कहता हूँ कि मुझे नहीं पता कि मेरे विधायक व् सांसद ने क्या-क्या काम किया है? जो सच है उसे स्वीकार किया जाना चाहिए।अख़बारों व् उनके भक्तों के दावों में कभी कभी काम होने का अहसास कराया जाता है लेकिन संसद के हंगामे पर अभी मनोरंजन करते रहना चाहिए क्योंकि सालाना करीब 40अरब रूपए खर्च करने के बाद साल में तीन बार एक-एक महीने का कार्यक्रम देश की जनता आयोजित करती है।मैं आयोजन कर्ता जनता को ही मानता हूँ क्योंकि बिना जनता के वोट व् टैक्स के यह संभव ही नहीं है। मैं तो कहता हूँ कि संसद के दोनों सदनों में ध्वनिमापक यंत्र लगा देने चाहिए व् हर सांसद की आवाज की तीव्रता दर्ज करते रहना चाहिए।साल के अंत में मेरिट लिस्ट जारी होनी चाहिए कि कौन ज्यादा देर तक चिल्लाया व् आवाज कितने डेसिबल तक पहुंची थी मतलब तीव्रता व् समयावधि दोनों का रिकॉर्ड होना चाहिए। फिर मेरिट के हिसाब से पुरस्कार दिए जाने चाहिए।पुरस्कार कैसे व् किस तरह दिए जाए इसके लिए एक कमेटी बनाई जानी चाहिए जिसमें लोकतंत्र के चारों स्तम्भ कतई सम्मिलित नहीं किये जाए!हाँ उस कमेटी में ओमपुरी जैसे दो लोग शामिल जरूर किये जाए ताकि पुरस्कार वितरण समारोह में माननीय हंगामा करने लग जाये तो शांति लाने में मददगार साबित हो! जनता को हंगामा बिलकुल नहीं करना चाहिए व् न ही ज्यादा सवाल जवाब करने चाहिए क्योंकि यह काम ख़ुशी के साथ आपने जनप्रतिनिधियों को चुनकर किया है इसलिए ये माननीय आपकी आवाज बनकर चिल्ला रहे है और गर्व के साथ कह भी रहे है कि मैं पांच लाख लोगों की आवाज उठाने आया हूँ!मैं पांच लाख लोगों की आवाज को दबने नहीं दूंगा!अब बेचारे आपकी ही आवाज को गांव -गली से उठाकर लोकतंत्र के मंदिर में मचे घमासान के बीच भी बुलंद कर रहा है तो सवाल किस बात का?लाल व् हरी कालीनों पर खड़ा होकर आपकी आवाज को बड़ी मुश्किल से खींचकर वेळ तक ले जाता है फिर गालों के दोनों तरफ हाथ सटाकर मुंह को लाउडस्पीकर की तरह करके,सांस अंदर खींचता है फिर एकदम सभापति महोदय की तरफ उछाल देता है।अब आपकी आवाज सुने या नहीं यह सभापति महोदय पर निर्भर करता है!आपके माननीय सांसद की मेहनत में कोई कमी हो तो बताओ?मेहनत खूब कर रहे है।अब विरोधी लोग भी तो कहीं से 5लाख लोगों की आवाज लेकर आया है तो इतनी आवाजों के बीच हंगामा तो होगा ही! ये तो कैमरे वाले गड़बड़ कर देते है कि सबको बराबर नहीं दिखाते इसलिए हमें कभी कभी यह भ्रम हो जाता है कि हमारी आवाज संसद में नहीं गूंजी!नेताजी तो बेचारे अपनी तरफ से 100%योगदान दे रहे है।कहीं कोई कमी नहीं है फिर भी आपको लगे कि नहीं,हमारी आवाज दबी है तो चुनावों तक अभी समय है और अच्छा चिल्लाने वाला कोई और खोज कर तैयार कर लीजिए।
गली-मोहल्लों में छाई ख़ामोशी
संसद में मचा हंगामा है।।
संसद की आज की कार्यवाही शुरू होते ही माननीयों ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।हर दल के भक्त अपने नेता के हंगामे को जायज व् दूसरे दल के नेताओं द्वारा किये जाने वाले हंगामें को नाजायज बता रहे है।बताना भी चाहिए क्योंकि राजनीतिक सक्रियता जारी रहनी चाहिए।जीवंत समाज में हर किसी को राजनीति करनी चाहिए ताकि छुपे हुए मुद्दे व् राजनीति के वेश में छुपे गुंडे-मवालियों का भी पता चलता रहे । रोज-रोज का हंगामा देखकर जनता जागरूक हो रही है।जनता को अपने नेताओं के बारे में जानने का पूरा हक है।अगर सबकुछ बंद कमरों में होने वाली सौदेबाजियां संसद में भी होने लग जाएगी तो जनता को पता ही नहीं चलेगा कि आखिर उनके नेताजी जीतकर दिल्ली जाते है तो पांच साल तक करते क्या है? बड़ी ईमानदारी के साथ कहता हूँ कि मुझे नहीं पता कि मेरे विधायक व् सांसद ने क्या-क्या काम किया है? जो सच है उसे स्वीकार किया जाना चाहिए।अख़बारों व् उनके भक्तों के दावों में कभी कभी काम होने का अहसास कराया जाता है लेकिन संसद के हंगामे पर अभी मनोरंजन करते रहना चाहिए क्योंकि सालाना करीब 40अरब रूपए खर्च करने के बाद साल में तीन बार एक-एक महीने का कार्यक्रम देश की जनता आयोजित करती है।मैं आयोजन कर्ता जनता को ही मानता हूँ क्योंकि बिना जनता के वोट व् टैक्स के यह संभव ही नहीं है। मैं तो कहता हूँ कि संसद के दोनों सदनों में ध्वनिमापक यंत्र लगा देने चाहिए व् हर सांसद की आवाज की तीव्रता दर्ज करते रहना चाहिए।साल के अंत में मेरिट लिस्ट जारी होनी चाहिए कि कौन ज्यादा देर तक चिल्लाया व् आवाज कितने डेसिबल तक पहुंची थी मतलब तीव्रता व् समयावधि दोनों का रिकॉर्ड होना चाहिए। फिर मेरिट के हिसाब से पुरस्कार दिए जाने चाहिए।पुरस्कार कैसे व् किस तरह दिए जाए इसके लिए एक कमेटी बनाई जानी चाहिए जिसमें लोकतंत्र के चारों स्तम्भ कतई सम्मिलित नहीं किये जाए!हाँ उस कमेटी में ओमपुरी जैसे दो लोग शामिल जरूर किये जाए ताकि पुरस्कार वितरण समारोह में माननीय हंगामा करने लग जाये तो शांति लाने में मददगार साबित हो! जनता को हंगामा बिलकुल नहीं करना चाहिए व् न ही ज्यादा सवाल जवाब करने चाहिए क्योंकि यह काम ख़ुशी के साथ आपने जनप्रतिनिधियों को चुनकर किया है इसलिए ये माननीय आपकी आवाज बनकर चिल्ला रहे है और गर्व के साथ कह भी रहे है कि मैं पांच लाख लोगों की आवाज उठाने आया हूँ!मैं पांच लाख लोगों की आवाज को दबने नहीं दूंगा!अब बेचारे आपकी ही आवाज को गांव -गली से उठाकर लोकतंत्र के मंदिर में मचे घमासान के बीच भी बुलंद कर रहा है तो सवाल किस बात का?लाल व् हरी कालीनों पर खड़ा होकर आपकी आवाज को बड़ी मुश्किल से खींचकर वेळ तक ले जाता है फिर गालों के दोनों तरफ हाथ सटाकर मुंह को लाउडस्पीकर की तरह करके,सांस अंदर खींचता है फिर एकदम सभापति महोदय की तरफ उछाल देता है।अब आपकी आवाज सुने या नहीं यह सभापति महोदय पर निर्भर करता है!आपके माननीय सांसद की मेहनत में कोई कमी हो तो बताओ?मेहनत खूब कर रहे है।अब विरोधी लोग भी तो कहीं से 5लाख लोगों की आवाज लेकर आया है तो इतनी आवाजों के बीच हंगामा तो होगा ही! ये तो कैमरे वाले गड़बड़ कर देते है कि सबको बराबर नहीं दिखाते इसलिए हमें कभी कभी यह भ्रम हो जाता है कि हमारी आवाज संसद में नहीं गूंजी!नेताजी तो बेचारे अपनी तरफ से 100%योगदान दे रहे है।कहीं कोई कमी नहीं है फिर भी आपको लगे कि नहीं,हमारी आवाज दबी है तो चुनावों तक अभी समय है और अच्छा चिल्लाने वाला कोई और खोज कर तैयार कर लीजिए।
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