लोकतंत्र बनाम गुंडातंत्र

लोकतंत्र जैसी व्यवस्था की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जहाँ लागू की जा रही है वहां की जनता कितनी जागरूक है! अगर जनता पांच साल में एक बार सिर्फ अपने मत का दान करके खामोश-मिजाजी  के साथ बैठ जाती है तो चुने हुए जनप्रतिनिधि सेवक के बजाय सफेदपोश लुटेरे बनने की तरफ बढ़ने लग जाते है और जनता के बजाय अपने हितों के अनुरूप नियम-कायदे बनाने लग जाते है जहाँ जनता के हितों को बेदर्दी के साथ दबाया जाता है। जनप्रतिनिधि चुने जाने के तुरंत बाद जनता से ही खतरा महशुस करने लग जाते है और अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस व्यवस्था का दुरूपयोग करने लग जाते है और जनता से वास्ता कट जाता है। जनता अपनी पीड़ा को कहना भी चाहे तो भी नेताजी को कह नहीं पाती है और अगर कोई कहने की हिम्मत जुटा भी लेता है या अपनी मांग पूरी न होने के कारण नाराजगी भी जता देता है तो उसे नेताजी का घोर विरोधी घोषित करके सत्ता उसका उत्पीड़न शुरू कर देती है।जनता की सामूहिक जागरूकता ऐसी व्यवस्था निर्माण को रोकने के लिए जरुरी होती है। कुछ बुद्धिजीवियों को मैंने चर्चा करते हुए सुना है कि बाहुबली-गुंडे लोगों को राजनीती में आने से रोका जानाचाहिए।लोकतंत्र के कानून कायदे कहते भी यही है लेकिन मैं चर्चा करना चाहता हूँ कि जब कानून गुंडों को जेल में भेजने के बने हुए है,चुने हुए जनप्रतिनिधि सब कुछ ठीक कर रहे है तो जनता इन गुंडों को चुनती क्यों है और बार-बार चुनती है!एकाध बूथ पर डरा-धमकाकर वोट लिया जा सकता है या एकाध चुनाव जीता जा सकता है लेकिन यह कहना कि हर बूथ या हर चुनाव ऐसे लोग इसी तरीके से जीतते रहते है तो राज्य-व्यवस्था उनको रोक क्यों नहीं पाती?इसको बार बार गुंडाराज,बाहुबल के रूप में प्रस्तुत करके-इनको समानांतर चलने का मौका देकर इतने बड़े लोकतंत्र व् ताकतवर देश की गरिमा को तार-तार क्यों किया जा रहा है? इन सवालों का जवाब ढूंढने के लिए हमे राजा भैया,मुख़्तार अंसारी,पप्पू यादव आदि लोगों के इलाकों की जनता की समस्याओं,व्याप्त भ्रष्टाचार,सरकारी संस्थानों की असफलता,लचर कानून व्यवस्था,बेरोजगारी,लाचारी,बेबसी आदि को समझना होगा।जनता गुरबत में दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में लगी हुई है।राशन की दुकानों पर जाओ तो राशन नहीं लता,अस्पताल में जाओ तो इलाज नहीं मिलता,स्कूलों में बच्चों को शिक्षा नहीं मिलती,बैंक में जाओ तो बिना पैसे दिए कुछ काम नहीं होता,लड़ाई-झगड़ों से छुटकारे के लिए थाने में जाओ तो कोई सुनता नहीं!गरीब अनपढ़ जनता हर चुनाव में इस उम्मीद के साथ मतदान करती है कि शायद इस बार कुछ बदल जाए।लेकिन वो बार-बार ठगी जाती है व् हर बार ठगी जाती है।उनके द्वारा चुना गया प्रतिनिधि ही एक नया सफेदपोश लुटेरा बन जाता है तो जनता विकल्प तलाशने लग जाती है। चारों तरफ से निराश जनता बड़े अपराध के आरोपियों के यहाँ मदद मांगने जाने लग जाती है।छोटे-छोटे अपराधियों पर लगाम जिस साफगोई से ये बड़े अपराधी लगाते है उससे बेहतर लगाम हमारी कानून व्यवस्था नहीं लगा पाती है। किसी गरीब को राशन नहीं मिले तो वो बड़े गुंडों से मदद लेते है और बड़े गुंडे तुरंत फोन करके,डीलर को धमकाकर राशन दिलवा देते है।ये लोग बड़े लोगों व् व्यापारियों से वसूली तो करते है और वसूली हासिल करने के लिए अपने ट्रैक रिकॉर्ड को ठीक रखने व् ताकत बरकरार रखने के लिए हत्या-अपहरण आदि कृत्यों को अंजाम भी देते है लेकिन साथ ही साथ बहुसंख्यक गरीब-लाचार लोगों की मदद भी करते है।ये लोग इन मदद के माध्यम से जनता का बहुमत हमेशा अपने पास में रखते है और जनता को भी यकीन होता है कि हमारे हर मर्ज की दवा इसी एक दफ्तर में है और बार-बार चुनती है। जनता की लाचारी का फायदा जनप्रतिनिधियों ने भी खूब उठाया व् इन गुंडा तंत्र ने भी।जन प्रतिनिधियों ने अपनी लूट को अंजाम देने के लिए अपने हिसाब से कानून कायदे बना दिए व् लोकतंत्र की दुहाई की आड़ देकर इसको जायज भी ठहरा दिया और गुंडे लोग इस तरह की सुविधा प्राप्त नहीं कर पाते है।वो इस मौके से चूक जाते है तो ये भी चुनाव के माध्यम से सफेदपोशों के पाले में शामिल होने की तरफ बढ़ जाते है।वहां से लोकतंत्रकी चादर ओढ़कर कलम से हजारों क़त्ल करके भी आदरणीय बने रहने की सुविधा है लेकिन बंदूक-छुरे द्वाराकिया एक क़त्ल भी जेल में जाने का भय हर समय दिखाता रहता है।आज कश्मीर नेताओं के बुने जाल में जल रहा है।हर साल हजारों लोगों की हत्याएं हो रही है लेकिन कोई दोषी नहीं है! दोनों तरफ के नेता नियम-कायदे,प्रस्ताव,अध्यादेश आदि लोकतंत्र की दुहाई देकर खेलते हुए लाखों लोगों का क़त्ल करवा चुके है लेकिन अपराधी कोई नहीं!सजा किसी को नहीं क्योंकि ये चुने हुए लोग है।अपने द्वारा निर्मित कानून को जायज ठहराने का हर हथकंडा जानते है।अपने-अपने देशों की जनता नाराजगी जाहिर करने लगे तो मीडिया के माध्यम से सबक सिखाने की धमकी या शांतिवार्ता का नाटक करके चुप करा देते है।स्थानीय मुद्दे पर सफेदपोशों की लूट को समझने के लिए हमारे पास सैंकड़ों उदाहरण है।9लाख करोड़ रूपए देश की जनता द्वारा भरे गये टैक्स के लेकर उद्योगपत्ति फाइव-स्टार होटलों में वाइन की चुस्कियों के साथ चिकन-मटन का लुत्फ़ उठा रहे है और 1.23लाख करोड़ रूपए के कर्ज तले डूबे 64 प्रतिशत आबादी वाली किसान बिरादरी में से हर 4घंटे में एक किसान को आत्महत्या करने के लिए हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा निर्मित व्यवस्था मजबूर कर देती है।उद्योगपत्तियों द्वारा लूटी गई सम्पदा को NPA, Right off आदि शगूफों के माध्यम से क़ानूनी छूट दे देते है लेकिन किसी गरीब मजदुर ने 50हजार का कर्ज लेकर मजदूरी स्थल तक पहुंचने के लिए बाइक खरीद ली और रोजगार छिनने से बाकी 5हजार रूपए भी नहीं दे पाया तो बाइक छीन लेंगे और इतनी बेइज्जती की जायेगी कि वो आत्महत्या करने को मजबूर हो जाये! मेरा यह सब बताने का मकसद सिर्फ इतना सा है कि जब तक जनता जागरूक होकर अपने अधिकारों के प्रति लड़ना शुरू नहीं करेगी!यह पांच साल की खामोश-मिजाजी बंद नहीं करेगी तब तक कोई चुनकर सफेदपोश लुटेरा कलम से लुटे या कोई गुंडा बंदूक के बल पर लुटे!लुटना तो जनता को ही है! न मैं गुंडों को जायज ठहरा रहा हूँ और न ही चुने हुए विरले ईमानदार नेताओं का अपमान कर रहा हूँ। न हर गुंडा चुनाव जीतता है और न चुनाव जीतने वाला हर नेता लुटेरा होता है!दो-चार चुने हुए लोग अच्छे व् ईमानदार भी हो सकते है!
नोट-फोटो से समझ में नहीं आ रहा है कि देश का कोई नागरिक पानी पी रहा है या लोकतंत्र को श्रद्धांजली दे रहा है!
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