जब भी किसी जवान या किसान की मौत की खबर सुनता हूँ तो एकदम सुन्न सा हो जाता हूँ।अब मेरे अंदर रोज 

शत शत नमन लिखने की हिम्मत नहीं बची।तिरंगे में लपेटकर जवानों के शवों की आवाजाही देखता हूँ तो सत्ता 

हत्यारिन व् इस देश की मिट्टी मरघट सी नजर आने लगी है।अब तिरंगे को देखकर मेरे अंदर देशभक्ति का 

जोश भी पैदा नहीं होता जैसा हमारे बचपन में होता था!मुझे ऐसा लगने लगा है कि सत्ता तिरंगे की आड़ में 

अपने ही लोगों का क़त्ल करवा रही है!रोज तिरंगे में लिपटी लाशों या किसानों की आत्महत्या के पुतलों को 

देखकर हमारी सरकार,लोकतंत्र,न्यायपालिका आदि पर से मेरा भरोसा उठने लग गया है! किसान या जवान 

की ही मौत पर मुझे इतना दुःख क्यों होता है इसका कारण यह नहीं है कि मैं किसान का बेटा हूँ या मेरे भाई 

लोग सेना व् पैरामिलिट्री में अपनी सेवाएं दे रहे है बल्कि मैं यह समझता हूँ कि अनुशासन के नाम पर जवानों 

का बड़े स्तर पर शोषण होता है,उनको अपनी बात कहने का हक़ तक नहीं दिया जाता!अगर आवाज उठाने 

की कोशिश कर दी तो सिस्टम ही मारकर तिरंगे में लपेटकर घर भेज देता है या पागल बताकर नौकरी से 

बर्खास्त कर देता है।जवान अपनी पीड़ा किसको बताये?कोई सुनने वाला ही नहीं है!इसी कारण इस देश का 

जवान वतन के लिए तो भूखा-प्यासा भी रहकर लड़ लेता है,अपने वतन के लिए कुर्बानी दे देता है लेकिन इस 

देश के सिस्टम से हमेशा हैरान,परेशान, निराश नजर आता है। यही हाल इस देश के किसानों का है।अन्न पैदा 

करके पुरे देश का पेट भरता है लेकिन खुद कभी भरपेट अच्छा खाना नहीं खा सकता।बुवाई से पहले 

बिचौलिए-व्यापारी फसलों की कीमतें बढ़ा देते है और किसान इन कीमतों को देखते हुए उसी फसल की बुवाई 

कर देता है व् जैसे ही फसल पकती है कीमतें गिरा दी जाती है।इसी कारण कभी भी किसान को अपनी उपज 

की सही कीमत नहीं मिलती है और हमेशा कर्ज तले दबा रहता है।दाल सौ रुपये किलो होते ही शहरी लोग 

चिल्लाने लगते है और सरकार आयात करके भाव गिरा देती है।कभी ऐसा भी होना चाहिए कि 12हजार की 

टीवी जब 32 हजार की हो जाये तो सस्ती टीवी का आयात करके ग्राहकों को उपलब्ध करवाई जाए!काश ऐसा 

होता लेकिन यह दुस्वप्न सा लगता है क्योंकि राजनेता व् तमाम सरकारें व्यापार के पीछे खड़ी है।जितनी मेहनत 

इस देश का व्यापारी खुद के व्यापार को बचाने में नहीं करता उससे ज्यादा मेहनत देश की सरकार करती है।

लेकिन किसान बेसहारा सा अपनी मेहनत की कीमत भी हासिल नहीं कर पाता! हवाई जहाज दुर्घटना में कोई 

मर जाए तो मुझे उतना दुःख नहीं होता जितना जवान या किसान की मौत पर होता है!क्योंकि वो लोग इतना 

पीछे छोड़ देते है जिस पर घरवालों का जीवन निर्वाह हो जाये।इनके समर्थक ग्रुप,बीमा, सरकारी मुआवजा भी 

पर्याप्त होता है लेकिन आत्महत्या करने वाला किसान कर्ज छोड़कर जाता है व् जवानों की शहादत पर रोष-

आक्रोश तो सब जाहिर करते है लेकिन उनके परिवारों की सुध लेने के लिए न सरकारें ध्यान देती है और न 

कोई अन्य!सत्ता की नाकामियों,गलत निर्णयों या राजनीतिक हितों के लिए जब जवानों की कुर्बानी होती है तो वो 

ओर भी व्यथित करने वाली होती है।ऐसा नहीं है कि किसान व् जवान मेहनत करना नहीं चाहते बल्कि इस देश 

के ये ही ग्रुप सबसे ज्यादा मेहनत करते है लेकिन ये दोनों ही व्यवस्था के सताए हुए लोग है।दुश्मनों से लड़ते 

हुए,अपने देश की दुश्मनों से रक्षा करते हुए शहादत हो जाए तो उतना दुःख नहीं होता लेकिन अपने ही 

नागरिकों के हाथों मौत हो तो बड़ी दुखदायी होती है।वो चाहे कश्मीर में पत्थरबाजी में कुर्बान हो या छत्तीसगढ़ 

में नक्सलियों से लड़ते हुए शहीद हो,शहादत की कसूरवार सत्ता व् सत्ता में बैठे लोग होते है।अपनी ही 

विफलताओं से हुई मौतों पर देशभक्ति के जोश का सैलाब लाना बड़ा मुश्किल होता है! तिरंगे में लिपटी लाश 

को उसी का कसूरवार जब सलामी देता नजर आता है तो देशभक्ति धराशायी होने लगती है व् मन में बगावती 

भाव पैदा होने लगते है।कहीं ऐसा न हो जाये की हमारी अगली पीढ़ी सेना ज्वाइन करने से ही इंकार कर दे या 

किसान अन्न पैदा करने से मना कर दे!व्यवस्था में सुधार बहुत जरुरी है नहीं तो मेरी तरह आपकी भी देशभक्ति 

का पारा कहीं लुढ़कने न लग जाये!सत्ता में बैठे हुए हमारे द्वारा ही चुने हुए लोग कहीं दुश्मन न नजर आने लगे!

अब इस तरह की मौतों का मंजर देखने की हिम्मत मेरे अंदर तो बिलकुल ही नहीं बची है।मेरे अंदर शत शत 

नमन लिखने या बोलने की क्षमता अब बिलकुल नहीं है।

डूबा हूँ अपने ही आंसुओ के सैलाब में

न जाने इन नजारों का अंजाम क्या होगा?
https://sunilmoga.blogspot.com/
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