भारतीय मीडिया की स्वतंत्रता उसकी प्रवृति व् उनके चाल-चलन, मालिकों की हैसियत,स्वघोषित राष्ट्रवादी सेंशरशिप, स्वघोषित धार्मिक-चरमपंथी परंपरा,आजादी के बाद से दबी कुचली धार्मिक उच्चता की खुंदक,नादान जनता के शिरोधार्य सत्ताधीशों की चापलूसी,जड़त्व में ग्रसित जनता की भावना,सत्ता-
उद्योगपत्तियों के नापाक गठबंधन,खुद ही आत्महत्या करने को उतारू पत्रकारों व् मुख्यधारा के संपादकों-एंकरों के इर्द-गिर्द घूमती है।
भारत में मीडिया नाम की चीज कभी रही ही नहीं! पुनर्जागरण काल,आधुनिक काल,21वीं सदी के दबाव में अपनी राग के लय-ताल दुनियां से जोड़ने की नाकाम कोशिश मात्र हुई है। आजादी के बाद संविधान के हिसाब से लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तैयार करना था लेकिन अनुच्छेद 19 की हेराफेरी के बूते भारतीय मीडिया चल रहा है। जहाँ सिर्फ नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कही गई है लेकिन उसी नम नींव पर मीडिया की ईमारत खड़ी कर ली गई।मीडिया के लिए भारतीय संविधान में कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं की गई है और न स्पष्ट दिशा-निर्देश तय है।सदियों से चलती भांड व्यवस्था के रूप में भारतीय मीडिया सिर्फ सत्ता का मुखौटा मात्र है। राजा की प्रशंसा से अशर्फियाँ मिलती थी व् अब लोकतंत्र में सत्ताधीशों की चापलूसी में शेयर व् पुरस्कार मिलते है! आपके पडौस में कोई गरीब भूख से मर रहा है,किसी असहाय को प्रताड़ित किया जा रहा है,किसी अबला की अस्मत लूटी जा रही है,कोई बीमारी में इलाज के अभाव में तड़प-तड़पकर दम तोड़ रहा है तो आप कुछ नहीं कर सकते!आप बोलोगे तो आपको प्रताड़ित किया जायेगा,लेकिन इस देश के मीडिया के पास ऐसी खबर छापने दिखाने का न हुनर है न नियत क्योंकि मीडिया उद्योगपत्ति चलाते है व् उद्योग को चलाने के लिए पूंजी के बल पर सत्ता खरीद चुके है।मेरा तो मानना है कि मीडिया को संत मानने के बजायकथावाचक माना जाये जो धंधा सेट करने के हिसाब से प्रवचन करते है। मैं दो दिन से इसी उधेड़बुन में परेशान हूँ कि इस देश की जनता कितनी भोली है कि मीडिया की चीख पर सोफे पर बाबा रामदेव की भांति योगासन करने लगती है व् पैसों के लालच से आंसुओं का त्याग करने वाले नायक-नायिका को देखकर इमोशनल अत्याचार की शिकार हो जाती है! पूंजीवाद कब आपके दिमाग को दूषित कर गया यह आपको पता ही नहीं चला।आपकी भावनाएं तथाकथित मीडिया कब बेचकर मुनाफा कमाने लग गया आप अनजान रह गए! ये विश्व मीडिया के रहनुमा भी अपना धंधा चलाते है। देश व् उनकी नजाकत के हिसाब से रैंकिंग देते है। विश्व प्रेस आजादी दिवस पर जो रैंकिंग जारी की है वो सतही है।अगर ईमानदार लोगों को पता चल जाये कि हिंदुस्तान में एक राज्यसभा की कुर्सी के लिए पूरा मीडिया घराना चंदर बरदाई बन जाता है व् एक तमगे के लिए बीरबल-टोडरमल अपना वजूद बेच देता है तो वो बिना जहर के आत्म-हत्या करने का नुस्खा हासिल कर लेंगे। भारत की जनता ऐसा नुस्खा किसी और को देने के मूड में नहीं है इसलिए राष्ट्रवाद की आग में अंगारे फेंकने की कला बचाने में सफल है!आप भी मीडिया को माफ़ी देकर अपना सर्वधर्म समभाव,सबका साथ-सबका विकास,के नारे को आगे बढ़ा दीजिये!गंगा-जमुनी तहजीब का हवाला देकर हर अपराध को स्वीकार कर लीजिए!भाग्य या किस्मत का फैसला ऊपरवाला कर ही देगा!इस लोक में नहीं तो परलोक में हो ही जायेगा। अगर परलोक में हिसाब नहीं होगा तो तीन लोक की उम्मीदें व् पुनर्जन्म का विश्वास जिन्दा रहने की आशाएं जगाता रहेगा! सुना है इस भूमि पर नारद के समान कोई पत्रकार नहीं हुआ है! मैं भी नारद के अवतार का इंतजार करूँगा व् आप भी करते रहिए!
उद्योगपत्तियों के नापाक गठबंधन,खुद ही आत्महत्या करने को उतारू पत्रकारों व् मुख्यधारा के संपादकों-एंकरों के इर्द-गिर्द घूमती है।
भारत में मीडिया नाम की चीज कभी रही ही नहीं! पुनर्जागरण काल,आधुनिक काल,21वीं सदी के दबाव में अपनी राग के लय-ताल दुनियां से जोड़ने की नाकाम कोशिश मात्र हुई है। आजादी के बाद संविधान के हिसाब से लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तैयार करना था लेकिन अनुच्छेद 19 की हेराफेरी के बूते भारतीय मीडिया चल रहा है। जहाँ सिर्फ नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कही गई है लेकिन उसी नम नींव पर मीडिया की ईमारत खड़ी कर ली गई।मीडिया के लिए भारतीय संविधान में कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं की गई है और न स्पष्ट दिशा-निर्देश तय है।सदियों से चलती भांड व्यवस्था के रूप में भारतीय मीडिया सिर्फ सत्ता का मुखौटा मात्र है। राजा की प्रशंसा से अशर्फियाँ मिलती थी व् अब लोकतंत्र में सत्ताधीशों की चापलूसी में शेयर व् पुरस्कार मिलते है! आपके पडौस में कोई गरीब भूख से मर रहा है,किसी असहाय को प्रताड़ित किया जा रहा है,किसी अबला की अस्मत लूटी जा रही है,कोई बीमारी में इलाज के अभाव में तड़प-तड़पकर दम तोड़ रहा है तो आप कुछ नहीं कर सकते!आप बोलोगे तो आपको प्रताड़ित किया जायेगा,लेकिन इस देश के मीडिया के पास ऐसी खबर छापने दिखाने का न हुनर है न नियत क्योंकि मीडिया उद्योगपत्ति चलाते है व् उद्योग को चलाने के लिए पूंजी के बल पर सत्ता खरीद चुके है।मेरा तो मानना है कि मीडिया को संत मानने के बजायकथावाचक माना जाये जो धंधा सेट करने के हिसाब से प्रवचन करते है। मैं दो दिन से इसी उधेड़बुन में परेशान हूँ कि इस देश की जनता कितनी भोली है कि मीडिया की चीख पर सोफे पर बाबा रामदेव की भांति योगासन करने लगती है व् पैसों के लालच से आंसुओं का त्याग करने वाले नायक-नायिका को देखकर इमोशनल अत्याचार की शिकार हो जाती है! पूंजीवाद कब आपके दिमाग को दूषित कर गया यह आपको पता ही नहीं चला।आपकी भावनाएं तथाकथित मीडिया कब बेचकर मुनाफा कमाने लग गया आप अनजान रह गए! ये विश्व मीडिया के रहनुमा भी अपना धंधा चलाते है। देश व् उनकी नजाकत के हिसाब से रैंकिंग देते है। विश्व प्रेस आजादी दिवस पर जो रैंकिंग जारी की है वो सतही है।अगर ईमानदार लोगों को पता चल जाये कि हिंदुस्तान में एक राज्यसभा की कुर्सी के लिए पूरा मीडिया घराना चंदर बरदाई बन जाता है व् एक तमगे के लिए बीरबल-टोडरमल अपना वजूद बेच देता है तो वो बिना जहर के आत्म-हत्या करने का नुस्खा हासिल कर लेंगे। भारत की जनता ऐसा नुस्खा किसी और को देने के मूड में नहीं है इसलिए राष्ट्रवाद की आग में अंगारे फेंकने की कला बचाने में सफल है!आप भी मीडिया को माफ़ी देकर अपना सर्वधर्म समभाव,सबका साथ-सबका विकास,के नारे को आगे बढ़ा दीजिये!गंगा-जमुनी तहजीब का हवाला देकर हर अपराध को स्वीकार कर लीजिए!भाग्य या किस्मत का फैसला ऊपरवाला कर ही देगा!इस लोक में नहीं तो परलोक में हो ही जायेगा। अगर परलोक में हिसाब नहीं होगा तो तीन लोक की उम्मीदें व् पुनर्जन्म का विश्वास जिन्दा रहने की आशाएं जगाता रहेगा! सुना है इस भूमि पर नारद के समान कोई पत्रकार नहीं हुआ है! मैं भी नारद के अवतार का इंतजार करूँगा व् आप भी करते रहिए!
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