एक कौम की कहानी,कौमपुत्र की जुबानी......(किसान)

मैं  किसान हूँ। यह मेरा देश है। इस देश को मैंने खून पसीने से सींचा है। बदन को झुलसाने वाली गर्मी  में,हड्डियों को गला देने वाली सर्द हवाओं में डटकर खड़ा रहता हूँ। गेहूं की एक बाली को मैं यह समझकर पालता-पोषता हूँ कि कम से कम मेरे देश की फिजाओं में विचरण करने वाले पंखेरू का तो पेट भर ही जायेगमैं कपास के एक पौधे को यह सोचते हुए बड़ा करता हूँ कि किसी गरीब के बदन को ढँकने के लिए एक कुर्ता  तो बन ही जायेगा। हर दाने,हर रेशे,हर तिनके से मेरी अथाह भावना जुडी होती है। हर दाने पर खाने वाले का नाम लिखकर भेजता हूँ ताकि जरूरत मंद को तय समय व तय मात्रा में मेरी मेहनत का हिस्सा प्राप्त होता रहे।न कुबेर के ढेर पर बैठने की चाहत और न राजमहलों की आरामगाहों की उम्मीदें।ऐसी कौम दुनियां में आपको कहीं नहीं मिलेगी जो अपनी मेहनत के 30%हिस्से का उपभोग खुद के लिए करती है। मेरी कौम की अपनी परम्पराएं है,जीने का अपना अंदाज है,अपनी भाषा शैली है। हाँ यह कौम जल्दी से आपके बनाये नियम-कायदों में अपने-आप को नहीं ढाल पाती। इसका भी कारण है कि आप कानून बनातेसमय हमारी कौम के रीती-रिवाजों को नजरअंदाज कर देते हो। हमारी कौम के योगदान को कूड़े के ढेर में फेंक देते होजो कौम सदियों से अपने आप को श्रेष्ठ मान बैठे है उनको मुफ्त में जीवन यात्रा करवाती हैरक्षा के ठेकेदारों को मुफ्त में साजो-सामान उपलब्ध करवाती हैजिनको नीच घोषित करके सदियों से आप शोषण कर रहे हो उनके जीवनयापन की चित व्यवस्था करती है। मेरी कौम के तन का कतरा-कतरा इस देश के नागरिकों की भलाई के लिए काम आता है।किसान  कौम ने कभी गुलामी की जंजीरों को स्वीकार नहीं किया। आप लोग सदियों से सत्ता पर कब्ज़ा जमाये बैठे रहे लेकिन नागरिकों पर अन्याय व अत्याचारों के अलावे कुछ नहीं किया। सत्ता के नशे में चूर होकर भविष्य को भूल गए। हमारी मेहनत की कमाई को सोमरस की मदहोशी में उड़ाते रहे। समय व वैश्विक हालातों के हिसाब से प्रगति के पथ पर नहीं चले थे जिसके कारण विदेशी आक्रमणकारियों को रोक नहीं पाए। हम उस समय भी इमानदारी के साथ लगान दे रहे थे। जब सिकंदर ने मंदिरों को लूट लूट कर आपको अप्रत्यक्ष  चेतावनियां दी थी लेकिन आप लोग नहीं सुधरे । उनकी लूट से सबक लेते हुए अगर धन को मंदिरों में लगाने के बजाय हथियारों पर खर्च करते तो तराइन के मैदान में मुंह पर गौरी के हाथों तमाचा नहीं पड़ता। सत्ता के लालची लोगों ने गुलाम-तुगलक-मुगलों से सत्ता के आनंद के लिए समझौते कर लिये और सत्ता के लाल बनकर अपने नागरिकों का उत्पीड़न करते रहे। किसी भी किसान  ने इन लोगों से समझौता नहीं किया। तमाम जयचंदों,मानसिंह,सिंधिया,होल्कर आदि नाम उठाकर देख लो कहीं भी किसान ने अपने वतन व साथियों के साथ गद्दारी नहीं की। अंग्रेजों की मुखबिरी नहीं की। आजादी की असली लड़ाइयां खेत-खलिहानों में लड़ी गई। कर वसूली की प्रथा को रोका गया। लाखों लोग  कुर्बान हो गए और आपने मनगढ़तकपोल-कल्पित कथाओं के माध्यम से इतिहास को गांधी-नेहरू बनाम गोवलकर-सावरकर में समेट दिया। फिर भी हम चुप रहे क्योंकि देश की सेवा असल में नारों-वादों के बुते नहीं होती। हम भी चुपचाप सीमा पर बलिदान देते रहे,देश को खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भर बना डाला। सबसे ज्यादा पशुधन इस देश में है। गेहूं-चावल का निर्यात करने लगे है। देश के दुश्मनों की मुल्क की तरफ देखनेकी हिम्मत नहीं होती। इसके पीछे हमारे बलिदानों की लाखों गाथाएं छुपी हुई है।आज देश में जो भी समस्या व् अराजकता का माहौल है वह तुम्हारी धूर्तता व कपटता का परिणाम है। पहलेपंजाब में आप लोगों ने अत्याचार की पराकाष्ठा को लांगा था। लोगों ने स्वाभिमान को गिरवी रखने से इंकारकर दिया था। आप लोगों ने षड्यंत्र रचकर लाखों बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। आपको पता  कि किसान  कौम कभी स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं करती उसका नाजायज फायदा आप लोग उठा रहे हो। आप लोग अपवादस्वरूप किसी घटना को लेकर किसानों  को देशद्रोही,गद्दार,आतंकी तक कह डालते हो। खापों की तुलना तालिबानी आतंकियों से कर डालते हो। एक बलात्कार की झूठी घटना रचकर बलात्कारी घोषित कर डालते हो। हमेशा आपका नजरिया किसानों  के प्रति नकारात्मक रहता है। क्योंकि किसान  आपके द्वारा दलितों पर जारी अत्याचारों के बीच चट्टान की तरह आ खड़ा हुआ है। मुसलमानों को दरकिनार करने के आपके षड्यंत्र पर बम बनकर बरस रहा है। आज किसान  कौम अपनी जड़ता को त्यागकर जवाब देने लग गई है। अब हर अन्याय व अत्याचार भरे तुम्हारे निर्णयों को कठघरे में खड़ा कर रही है। किसान  कौम तुम्हारे कुलीन तंत्र की लूट को चुनौती देने लग गई है। अब इस कौम का धैर्य जवाब दे रहा है। तुम्हारे लूट के तंत्र के कारण खेती नुकसान का सौदा हो गई। समाजवाद को छोड़कर पूंजीवाद अपनाने की तुम्हारी धूर्तता का परिणाम है कि किसान कौम भी पूंजी में अपना हिस्सा मांगने लग गई। बार बार तुम्हारी लूट व गर्त में जाते देश के हालात को देखकर सत्ता में बंटवारा मांगने लग गई है। आपके आग तो लगनी ही थी। जब किसान कौम जिस सम्मान की हक़दार थी वो सम्मान देने के बजाय बदनामी की आग में धकेलने लगोगे तो स्वाभिमानी कौम प्रत्युत्तर तो देगी ही। जब जवाब मिला तो तुम समस्या पर ध्यान देने के बजाय 35बनाम किसान करने पर उतर आये हो तो देश के सामने विकट हालात पैदा होंगे ही। लेकिन मैं फिर विश्वास दिलाता हूँ कि मेरी कौम छल-कपट का हर हालात में मुकाबला करेगी ही लेकिन देशहमारा है,हमने खून पसीने से सींचा है उस पर कोई आंच नहीं आने देगी। सत्ता के लिए तुम्हारी तरह देश को तोड़ने के षड्यंत्रों में कभी शामिल नहीं होगी। तुम्हारी तरह न किसी को पाकिस्तान भेजने की बात करेगी और न गोबर वाली सोच से देश के नागरिकों पर अत्याचारों करने देगी।मेरी कौम हर हाल में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व अम्बेडकरवादी तर्क के साथ मुकाबला करेगी। सूरजमल की वीरता से मैदान में उतरेगी। भगत सिंह के जोशसे वैचारिक क्रांति पैदा करेगी। सर छोटूराम को अपना राम मानकर उनकी बुद्धि व विवेक का उपयोगकरेगी। सर हयात खान सा सामंजस्य बिठाकर हर समाज को साथ लेकर चलेगी। बाबा साहब अम्बेडकर को नमन करते हुए संवैधानिक प्रावधानों का पालन करते हुए आगे बढ़ेगी। सत्यवादी वीर तेजाजी को आदर्श मानकर सत्यनिष्ठा व वचनबद्धता को निभाएगी। हमारे युवा हर गरीब व दलित के लिए सहायक बनकर खड़े होंगे। तुम्हारे पाखंड की परत को हर जगह,हर मंच पर उधेड़ेगी। जो सहन किया वो बहुत है। अब और नहीं!



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