क्या लिखना है व क्यों लिखना है ? वो खुद हमको तय करना है।

पहले भोर सवेरे हम चिड़ियों की चहक सुनते थे तो पता चल जाता था कि सूर्योदय की आहट आने वाली है। जब से हम लोगों ने चिड़ियों की चहक को छोड़कर अलार्म की घंटियां सुननी शुरू की है उसके साथ ही हमारी चेतना मर गई और उन्माद से दिमाग की घंटियां बजने लग गई। उसी उन्माद का नतीजा है कि आज चारों तरफ शोरगुल तो बहुत है लेकिन उपयोगितावादी संवेदनशीलता मर गई। हम संवेदनशील तो बहुत हुए लेकिन जो सवेंदना देश-समाज के काम आयें उनको भूलकर उन्मादी संवेदनशीलता में बह गए। हम हर उस घटना-बात पर तत्काल प्रतिक्रिया दे बैठते है जो समाज को नुकसान पहुंचाती है। उन्माद में बहकर जाहिर की गई संवेदनशीलता ने कभी भी मानव सभ्यता का भला नहीं किया है।
हम लोगों ने घर में माँ-बाप की आँखों के आईने को भूलकर टीवी पर चीखते-चिल्लाते एंकरों को देश-समाज का आइना समझने की जो गलती की है उसी का खामियाजा आज हमारा देश समाज भुगत रहा है। आज ये एंकर-पत्रकार पत्रकारिता के पेशे को छोड़कर हर वो काम करने लग गए जो आज तक गुंडे मवाली करते  रहे थे। हफ्तावसूली से लेकर धमकाना,चाटुकारिता की चटनी परोसना,राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं की तरह पेश आने से भी आगे बढ़ चूके है।हम इनको सुनना नहीं चाहते लेकिन किसी किसी तरह,किसी किसी माध्यम से ये हमारे दिमाग में घुसने में कामयाब हो ही जाते है। जो सच की आवाज उठाते रहे है उनको देशविरोधी करार दिया गया और जो सत्ता की चौखट पर माथा टेककर उनका गुणगान करने लग गए वो देशभक्त चैनल घोषित किये गए। हम दर्शक अनजाने में ही सही लेकिन देशभक्त-देशविरोधी गुटों में बाँट दिए गए। अब हमने भी उनके नाम से फैनक्लब बना लिए है और आपस में टकराते हुए उसी बेजान सी यात्रा में घसीटते हुए जा रहे है। हमारे हाथों में आज सोशल मीडिया आया है जिसके माध्यम से हम गरीबों-मजदूरों की आँखों के आईने में झांक सकते है। आज तकनीक के इस युग में हम लोग इसका बेहतर उपयोग कर सकते है। यहाँ पर भी हम लोग ग्रुपों में विभक्त है लेकिन समान विचारधारा व् समान उद्देश्यों वाले लोग मिलकर बेहतर परिणाम लाने का प्रयास कर सकते है। यहाँ धनबल या बाहुबल का आधिपत्य जमाना मुश्किल है क्योंकि इस आभासी माध्यम की दीवारों पर कलम तो चल सकती है लेकिन गाड़ियों के काफिले नहीं चल सकते! रैलियां नहीं हो सकती! नोटों की मालाएं नहीं पहनाई जा सकती!बड़े-बड़े मंच नहीं सज सकते! जितनी आजादी देश के प्रधानमंत्री को यहाँ लिखने की है उतनी ही आजादी गरीब किसान के बेटे को लिखने की है। क्या लिखना है   क्यों लिखना है वो खुद हमको तय करना है।

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