हर इंसान की जिंदगी का सबसे कीमती लम्हा बचपन होता है और उसको संवारने का काम करती है माँ।माँ कहते ही मुंह भर आता है।मैं आज माँ पर कोई कविता नहीं लिख रहा क्योंकि माँ को पढ़नी नहीं आती। चेहरा देखकर समझने वालों को कागजी शिक्षा की जरुरत भी नहीं होती।यही सोचकर शायद माँ स्कूल नहीं गई होगी! माँ दुनियां का सबसे कीमती हुनर जानती है और उसको तराशने का तरीका भी।बच्चा पैदा करने से ही माँ का दर्जा दिया जाता हो,ऐसा भी नहीं है क्योंकि जिंदगी जीने का सलीका सिखाना या यूँ कहूँ कि जिंदगी की पहली पाठशाला है माँ तो भी तुच्छ ही होगा।क्योंकि माँ सिर्फ पहली पाठशाला ही नहीं होती बल्कि अंतिम पाठशाला है।जो कला माँ सिखाती है वो ताउम्र साथ चलती है। माँ के साथ अगर माँ का आँचल मिले तो किसी जन्नत को और क्यों ढूँढा जाये!माँ वो नगमा है जिसे हर समय गुनगुनाया जा सकता है।माँ वो हीरा है जिसकी रौशनी हमेशा देदीप्यमान रहती है जिसको किसी इंधन की जरुरत ही नहीं होती।जो खुद ऊर्जा व् उम्मीदों का भंडार हो वहां पूरक की कहाँ जरुरत?माँ का आँचल सुखों का संसार है तो माँ की दुआएं खुदा का पैगाम होती है।वो माँ ही होती है जो अपने अरमानो को कुर्बान करके अपने बच्चों के अरमान पुरे होने पर ख़ुशी से लबरेज हो जाती है। माँ अगर आपके बारे में लिखता जाऊँ तो दुनियां की हर कलम छोटी पड़ जाती है,कागज का ढेर भी टुकड़ा लगने लगता है।माँ मैं आपको शब्दों ,कलम व् स्याही के दायरे में बांधना भी नहीं चाहता।क्योंकि आप इन सबसे ऊपर हो।जिंदगी की राह में जब भी उदास होता हूँ तो सिर्फ आपका चेहरा देखकर फिर चलने लग जाता हूँ।मेरी बुद्धि इतनी नहीं है कि आपका चेहरा पढ़ लूँ लेकिन इतना जानता हूँ कि जो ऊर्जा आपका चेहरा देखकर मुझे मिलती है वो इस जहाँ में और कहीं नहीं मिलती।इसलिए माँ मैं आज तक दिल में आस्था संजोकर किसी मंदिर नहीं गया।आपके सिवाय किसी के चरण स्पर्श नहीं किये।किसी के सामने कभी नतमस्तक नहीं हुआ।क्योंकि मैं आपको सर्वोपरि मानता हूँ।आपके बराबर का दर्जा किसी को नहीं देता।जो आप हो वो सिर्फ आप ही हो। मैंने शास्त्रों में भगवान को ढूँढा।मैंने तीर्थ-स्थलों में भगवान् को ढूँढा।मैंने हिंदुत्व में भगवान को ढूँढा।मैंने इस्लाम व् ईसायत में भगवान को ढूँढा लेकिन आपसे से बढ़कर मुझे कोई नजर नहीं आया।आप साक्षात् मेरे पास हो तो रहस्यों में क्यों भटकता फिरूँ?आपने मेरे लिए जो बलिदान किये है उनकी कीमत अदा करने की हैसियत मुझमे नहीं है।मेरा बस प्रयास रहेगा माँ कि कभी आपकी आँखों में आंसू आये तो वो सिर्फ और सिर्फ ख़ुशी के हो।
मुन्नवर राणा का लिखा ......
किसी के हिस्से घर आया तो
किसी के हिस्से दुकां आई।
मैं घर में सबसे छोटा हूँ
मेरे हिस्से माँ आई।।
जब मेरे हिस्से माँ आ गई तो मुझे और क्या चाहिए?जाते जाते उन लोगों के लिए जो पैसे कमाने के चक्कर में माँ को गाँव में छोड़कर दूर शहरों में चले गए उसके लिए पंजाबी कवि सुरजीत पातर ने लिखा है...
जो विदेशों में रुलते है रोजी के लिए
जब वो अपने देश लौटेंगे
कुछ तो माँ की चिता की अगन तापंगे
कुछ कब्रों के पेड़ों की छाँव में बैठ जायेंगे।
सलाम माँ..........
मुन्नवर राणा का लिखा ......
किसी के हिस्से घर आया तो
किसी के हिस्से दुकां आई।
मैं घर में सबसे छोटा हूँ
मेरे हिस्से माँ आई।।
जब मेरे हिस्से माँ आ गई तो मुझे और क्या चाहिए?जाते जाते उन लोगों के लिए जो पैसे कमाने के चक्कर में माँ को गाँव में छोड़कर दूर शहरों में चले गए उसके लिए पंजाबी कवि सुरजीत पातर ने लिखा है...
जो विदेशों में रुलते है रोजी के लिए
जब वो अपने देश लौटेंगे
कुछ तो माँ की चिता की अगन तापंगे
कुछ कब्रों के पेड़ों की छाँव में बैठ जायेंगे।
सलाम माँ..........
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