किसान इस देश का प्राथमिक उत्पादक है व् अंतिम उपभोक्ता है।

किसान इस देश का प्राथमिक उत्पादक है व् अंतिम उपभोक्ता है।देश की 70%आबादी खेती किसानी से जुड़ी  हुई है। जब कोई पूंजीपति किसी वस्तु को बेचना चाहता है तो उसका टारगेट अंतिम उपभोक्ता होता है और वह अंतिम उपभोक्ता किसान-मजदूर होता है। एक उदहारण से समझिए। जब किसान कपास की खेती करता है तो कपास के बीज को रुई तक पहुंचाने के लिए जो चीजें खरीदता है  मसलन बीज, बिजली, खाद, दवाइयां,आदि का अंतिम उपभोक्ता होता है और सबसे ज्यादा कीमतें उसी को चुकानी पड़ती है।जब रुई तैयार होती है तो वो प्राथमिक उत्पादक बन जाता है और इस श्रृंखला में सबसे कम रुई की कीमत उसे ही प्राप्त होती है।यही रुई जब विभिन्न कपड़ो के रूप में बदल जाती है तो फिर से अंतिम उपभोक्ता बन जाता है और उसी रुई की सबसे ज्यादा कीमत वो ही चुकाकर खरीदता है। यही हाल कोयले की खदानों में काम करने वाले मजदूरों का होता है।कोयले की खुदाई करने वाला मजदुर प्राथमिक उत्पादक होता है व् जब यह कोयला भट्टियों में पहुँच जाता है तो उससे निर्मित बिजली का अंतिम उपभोक्ता वो ही मजदुर होता है।उसकी हालत यह होती है कि वो दशकों से आज भी इस आस में बैठा है कि थोड़ी कमाई हो जाये तो घर में बिजली का इंतजाम हो जाये।यह बातें सीधी व् सरल भाषा में इसलिए बता रहा हूँ कि आजकल बड़ी-बड़ी योजनाओं का दौर चल रहा है।हमारे खून-पसीने की कमाई का पैसा बैंक चंद पूंजीपतियों को देकर कहती है कि आप किसान तक सॉइल हेल्थ कार्ड पहुंचा दो,आप ग्राम ज्योति योजना से किसान व् मजदुर के घर एक-एक बिजली का बल्ब लगा दो!इन योजनाओं के नाम पर पूंजीपति व् सत्ताधारी मिलकर प्राथमिक उत्पादक की गाढ़ी कमाई को चट कर जाते है व् अंतिम उपभोक्ता को बाजार के हवाले से लुटने पर मजबूर कर दिया जाता है। आज जो भी चल रहा है वो किसान-मजदूर के नाम पर सिर्फ बहकाया जा रहा है।न किसान को उसके उत्पाद की उचित कीमत देने की बात होती है न मजदुर को उचित मजदूरी।यह सबका साथ-सबका  विकास वाला जो नारा हवा में गूंज रहा है जिसका अर्थ है कि उत्पादन करने में सभी किसान-मजदूर साथ हो और विकास उन सभी का होगा जो हमारे लिए चार्टर्ड विमान की व्यवस्था करते है,हमारे लिए जो दिन में तीन-तीन सूट बदलने में मदद करते है,जो व्यक्तिवाद, चाटुकारिता व् चमचागिरी के तमाम कीर्तिमान स्थापित करते है,जो जनता को पेट की भूख के बजाय धर्म व् जातिवाद की भूख के हवाले करने में मदद करते है।सबका विकास में सिर्फ 50-60 लोग ही शामिल है जो देश की करोड़ों जनता के सपनो व् उम्मीदों को भटकाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते है। एक तरफ बात करते है कि इस देश में 65%जनसँख्या युवाओं की है तो दूसरी तरफ उनको काम देने के बजाय कंफ्यूज करके छोड़ा जा रहा है।90%युवा आज उहापोह के हालातों में से गुजर रहे है।जिनको नौकरी का जोइनिंग प्रमाणपत्र देना था उनको गद्दारी व् देशभक्ति के प्रमाणपत्र दिए जा रहे है। जिन शिक्षण संस्थाओं में सहूलियतें देनी थी उनको राष्ट्रवाद की घुंटी दी जा रही है।जिन किसानों को स्वामीनाथन आयोग देना था उनको सॉइल हेल्थ कार्ड व् फसल बीमा का ठगी कार्ड दिया जा रहा है।जिन मजदूरों को काम व् मजदूरी देनी थी उनके हाथों में केसरिया झंडा व् मुंह में जय माता दी का नारा ठूंसा जा रहा  है।जिन बहन बेटियों को समानता का अधिकार देना था उनको फर्जी राष्ट्रवादी गुंडे बलात्कार की धमकियाँ दे रहे है।वाकई विकास की गंगा राह भटककर महानदी से लौटकर चंबल की नदी की तरफ उलटी बहकर चंबल के बीहड़ों में समा रही है।माइक,मंच व् झुमलों से देश बदला जा रहा है।सब कुछ हवाबाजी में ही हो रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि जब जब सत्ता धार्मिक उन्मादी लोगों के हाथों में आई है तब तब दुनियां का हर देश गर्त में पहुंचा है।जब भी जहाँ भी सत्ता का प्रचारक मीडिया बना और सत्ता धर्म गुरुओं के चरणों में नतमस्तक हुई तब जनता मूर्खता की पराकाष्ठा को लांघते हुए अपने ही झुम्पड़े में आग इस उम्मीद के साथ लगा बैठी कि शायद इस आग की लपटें बड़े बड़े महलों तक पहुंचेगी!काश ऐसा होता..
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