वामपंथी विचारधारा क्या है ?

नौजवानो को इस विचारधारा को समझना अत्यंत आवश्यक है। किसी भी देश में नौजवान देश के विकास की  धुरी होते है। उनकी समझ, लगन, विचार ही राष्ट्र बनाते हैं, देश में अभी खूब लेफ्ट राइट चल रहा है, चाहे केरला,  त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, बिहार, पूरे देश में  एक तरफ वामपंथी विचारधारा प्रखर हो रही है, वहीं दूसरी पूंजीवादी व्यवस्था को कुचलने की कोशिश में लगी है, आज देश की नई पीढ़ी बहुत ही कम शब्दो में इसको समझना चाहती है, अब हम इसके मुख्य विषय पर बात करते है ।

वामपंथी विचारधारा क्या है।

समाजवाद का सबसे चरम रूप वामपंथ (कम्युनिज्म) होता है।

वामपंथी विचारधारा स्वतंत्रता, साम्यवाद और परिवर्तन में विश्वास रखती है।

इसका उद्गम फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हुआ। इस क्रांति में लोगों ने राजशाही को खत्म कर दिया और सरकार का नियंत्रण लिया। जो लोग राजशाही का विरोध और क्रांति का समर्थन करते थे उन्हें वामपंथी कहा गया। पहली बात आपको इसके इतिहास में जाना होगा । 1789 में जब फ्रेंच क्रांति हुई तब लुई सोहेलवा वहां का राजा था। उसे जनता की समस्या से ज्यादा सरोकार नही था।  1779 में फ्रांस की नेशनल असेंबली दो धड़ों में बंट गई थी, जिनमें से एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग कर रहा था और दूसरा राजशाही के समर्थन में था. यह मांग जब आंदोलन का रूप लेने लगी तो तत्कालीन सम्राट लुई-16  ने नेशनल असेंबली की एक बैठक बुलाई जिसमें समाज के हर तबके के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस बैठक में सम्राट के समर्थकों को सम्राट के दाईं और क्रांति के समर्थकों को बाईं ओर बैठने को कहा गया था। राजनीति में विचारधारा के आधार पर पहले औपचारिक बंटवारे की शुरुआत इसी बैठक व्यवस्था से मानी जाती है। तब राजशाही समर्थकों को दक्षिणपंथी (राइटिस्ट या राइट विंग) और विरोधियों के वामपंथी (लेफ्टिस्ट या लेफ्ट विंग)  कहा गया था।

यूरोप में कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स जैसे लेखकों ने वामपंथी विचारधारा के सिद्धांतों को और स्पष्ट किया . इन दोनों ने 1848 में कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो लिखा था। जिसमें पूंजीवाद की खामियां बताते हुए पूरी दुनिया के  मजदूरों से उसके खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया गया था।इस तरह लेफ्टिस्ट फिर कम्यूनिस्ट भी कहलाने लगे।

सरल शब्दो मे वामपंथी विचारधारा मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है वामपंथ शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता और दक्षिण पंथ शोषक वर्ग का प्रति निधित्व करता है꫰आज लेफ्ट को उदारवाद, समूहवाद, धर्मनिरपेक्षता और राइट को अथॉरिटी, व्यक्तिवाद और धार्मिक कट्टरता से जोड़कर देखा जाता है. हालांकि आखिर में यह बहस सामाजिक बराबरी और गैर-बराबरी की ही है।

एक लाइन में कहूँ तो वामपंथ वो विचारधारा है जो बदलाव मे विश्वास करती है। ये लोग सामाजिक  समानता,लैंगिक समानता,मानवता,धर्मनिर्पेक्षता आदि की बात करते हैं ।इसके उलट दक्षिणपंथी विचारधारा बदलाव के विरुद्घ है। इसलिये वो ज्यादा धार्मिक होते है अपनी संस्कृति,परंपरा को संभालकर रखना चाहते हैं।

इसलिये दक्षिणपंथी लोग शरणार्थियों को शरण देने में विरोध प्रकट करते हैं। क्योंकि दूसरी संस्कृति लोग इनकी संस्कृति को नुकसान पहुँचा सकता है। हाल में भारत में राहिग्या मुसलमानों पर हो रही राजनीति इसका उदाहरण है।

विचारधारा वर्ग से पैदा होती है। वर्ग का आशय, धन से जुड़ा होता है। ये धन वर्ग बनाता है। इसलिए मुख्य रूप से  दुनियां में दो वर्ग है। एक पूँजीपति वर्ग, दूसरा मेहनत कश वर्ग, जिसमें मजदूर किसान, दुकानदार, आम जनता,  जो बहुसंख्यक होती है।

दोनों वर्ग अपने अपने हितों को कायम रखने के लिये, दूसरे को कमजोर करने, और अपने वश में रखने की  अनगिनत प्रयास सदियों से करते आये हैं। आगे भी होगें । इसलिए यह सुनिश्चित है। कि वर्ग संघर्ष कभी खत्म नही होगा, कमजोर हो सकता है।

वर्तमान में, वामपंथी विचारधारा समानता, समाजवाद और शासन में सरकार की अधिक भागीदारी को बढ़ावा देती है। उदाहरण के लिए, वामपंथी विचारधारा का मानना ​​है। कि व्यापार पर अधिक नियम हो और अमीरों पर अधिक कर समलैंगिक विवाह, नारीवाद, नागरिक अधिकार, भूमंडलीकरण, धर्म और सरकार में वियोग, मौत की सजा का विरोध और इस तरह के कई प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देती है।


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