हिंदुओ के पाखंड के खिलाफ बोलो तो इस्लामिक कट्टरपंथी खुश होते है और इस्लाम के पाखंड के खिलाफ लिखो तो हिन्दू कट्टरपंथी तालियां बजाते है।

हिंदुओं के पाखंड की प्रशंसा करो तो अंधभक्त हिन्दू खुश व मुसलमानों के पाखंड का समर्थन कर दो तो अंधभक्त मुसलमान तालियां बजा लेते है।बस धर्मनिरपेक्षता का रायता इन दोनों के पाखंड के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है।

असली धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग धर्म के आधार पर भेदभाव/समर्थन/सहायता किसी भी स्वरूप में न करे।जो जनता के पैसे से वेतन लेते है वो किसी धार्मिक संगठन का हिस्सा बनकर धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं कर सकते!

जो संविधान में अपने धर्म की पूजा/इबादत व प्रचार-प्रसार की छूट दी गई है वो गैर-संवैधानिक लोगों व गैर-सरकारी खजाने से जीवनयापन करने वाले लोगों से है।आरएसएस की सेवा भारती व इस्लाम के मदरसों की शिक्षा संविधान की बुनियाद के खिलाफ है।देश मे एक तरह की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली लागू न होने के कारण ये दुष्प्रभाव के रूप में हमारे सामने है।

मुस्लिम मदरसों के अनुदान से लेकर शिक्षकों के वेतन तक हमेशा सवाल खड़े किए जाते है मगर सरकारी स्कूलों में जो सुबह-सुबह सरस्वती वंदना के पाखंड से दिन की शुरुआत होती है उनपर सवाल क्यों नहीं खड़े किए जाते?मैं इसलिए सरकारी स्कूल में सरस्वती वंदना को पाखंड कहता हूँ क्योंकि धर्मनिरपेक्ष संविधान के खिलाफ है।

मोदी सरकार को चाहिए कि शिक्षा का पूर्ण रूप से सार्वजनीकरण करे,पूरे देश के लिए एक मॉडल शिक्षा नीति लेकर आये व इन डीएवी में लकड़ियां फूंकने वालों,सेवाभारती में बच्चों के दिमाग मे जहर भरने वालों,इन मदरसों में देश से ऊपर धर्म की कट्टरता का जहर फैलाने वालों पर ताला लगाएं।अल्पसंख्यक की सारी सुविधाएं खत्म करके सिर्फ अपनी आस्था व शांतिपूर्वक प्रचार प्रसार के खुला मैदान छोड़ दें।बहुसंख्यक एकता के नाम पर जो उन्मादी जहर दूसरे समुदायों के खिलाफ उगलते है उनको देशद्रोह की श्रेणी में डाल दें।

नफरत का बीज शिक्षण संस्थानों में डाला जाता है,मीडिया व धर्मखोर मिलकर इनकी सिंचाई करते है और राजनेता व पूंजीपति मिलकर फसल काटते है।

देश की धर्मनिरपेक्षता सिर्फ कुछ चरमपंथी लोगों द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने से ही खतरे में नहीं पड़ती है बल्कि इनकी आड़ में उन करोड़ों आदिवासियों,ओबीसी,एससी, एसटी के लोगों को बरगलाकर हिंदुत्व की ब्रिगेड घोषित करने से भी पड़ती है!जो लोग आदिवासियों से,ओबीसी-एससी-एसटी से यह कह रहे है कि जनगणना में धर्म के कॉलम में हिन्दू भरा जाए उससे भी धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ती है!

देश कोरोना के गंभीर संकट से जूझ रहा है और एक सरकारी स्कूल का प्रधानाध्यापक स्कूल के बच्चों को क्या  सीखने का निर्देश दे रहा है उसकी बानगी देखिये....

समस्त संस्था प्रधान 
एवं अभिभावकगण 
ब्लॉक श्रीमाधोपुर  

🌟रामायण एवं महाभारत🌟 
     पर आधारित ब्लॉक स्तरीय 

    *सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता*

योग्यता :- 
कक्षा - 6 से 12 तक के  विद्यार्थी

परीक्षा आयोजन का संभावित समय - मई 2020 

लॉक डाउन पश्चात् तिथि बाद में घोषित कर प्रसारित कर दी जाएगी. 

 समस्त संस्था प्रधानों, अभिभावकों एवं विद्यार्थियों से आग्रह है कि रामायण और महाभारत पर होने वाली प्रतियोगिता के प्रश्नों का आधार दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले रामायण और महाभारत के एपिसोड होंगे।

पुरस्कार :-

प्रथम तीन तीन विद्यार्थी प्रत्येक कक्षा से होंगे।

100 छात्रों को सांत्वना पुरस्कार

आयोजक - 
सांस्कृतिक उत्थान एवं प्रचार समिति 
गायत्री परिवार एवं समस्त धर्मप्रेमी आमजन श्रीमाधोपुर.

यह कौनसा गायत्री परिवार है जो देश के संविधान के ऊपर बैठकर स्कूलों के संस्थाप्रधानों को निर्देशित कर रहा है?ये संस्था प्रधान सोशल मीडिया के माध्यम से खुलेआम पेरेंट्स को मजबूर कर रहे है कि आप बच्चों को रामायण व महाभारत दिखाओ?ये कौन जाहिल लोग है जो वेतन सरकारी खजाने से उठा रहे है और काम अपना धार्मिक एजेंडा सेट करने का कर रहे है?

माफी नहीं फैसलों की दरकार है...

साहब देश के गरीबों से माफी मत मांगिये!भूख से बिलखते बच्चों के लिए,गोद मे तड़पते बच्चों को लेकर आंसू पोंछती माताओं के लिए,होंठ कंपकंपाते लाचार-बेबस बाप के लिए इस माफी के क्या मायने है?

साहब आपको कठोर फैसले लेने के लिए कुर्सी पर बैठाया है।आप गरीबों के साथ भावुकता का मजाक मत करिए!एक तरफ मुनाफाखोरी-कालाबाजारी करके तिजोरियां भरी जा रही है और दूसरी तरफ गरीब लोग भूख से तड़प रहे है!एक तरफ अमीरों ने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिए तो दूसरी तरफ सड़कों पर भूखा-प्यासा भारत भटक रहा है!

बड़ी मिठास होती है,गरीबों के खून मे साहब,
जिसे मौका मिलता है वो पीता जरूर है!

साहब धनाढ्य परिवारों के शहजादों को भर-भरकर विदेशों से ला रहे थे तब आपको पता था कि ये लोग देश के लिए मुसीबत लाएंगे मगर आपने कठोर फैसला नहीं लिया।अपने पूर्वजों सावरकर आदि की तरह माफीनामा भर-भरकर के गुनाहों को छिपाने की कोशिश मत करिए।

देश के सभी क्रिकेट स्टेडियम को तुरंत आइसोलेशन सेन्टर में बदल डालिये।देश के कॉलेजों/स्कूलों को आइसोलेशन/जांच केंद्रों में बदल डालिये!जो लोग सड़कों पर है उनको बसों में भरकर इन स्टेडियम/कॉलेज/स्कूल में ले जाकर समुचित देखभाल की व्यवस्था करिये।

अगर धन की कमी आ रही है तो उदाहरण बता रहा हूँ।1969 व 1980 में जब देश आर्थिक संकट में फंसा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने माफी मांगने के बजाय 14 व 7बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था।आज देश संकट में है और आपसे कठोर फैसले की उम्मीद कर रहा है।

आज जो धनकुबेर लाखों की नेटवर्थ बनाये बैठे है उन कंपनियों को कब्जे में लीजिये!अगर पैसे की कमी आड़े आ रही है तो लाखों करोड़ रुपये धार्मिक स्थलों के पास पड़े है।एक फैसला लीजिये साहब और इनका राष्ट्रीयकरण करते हुए जनता के लिए दरवाजे खोल दीजिये।पैसे है,जगह है,बिल्डिंग है!ठहरने की हर सुविधा उपलब्ध है।

साहब बात संसाधनों की है ही नहीं!बात व्यवस्था की है ही नहीं!न बात गरीबों की है!बात नियत की है साहब!रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था उसी तर्ज पर भविष्य आपको इतिहास के रूप में दर्ज करेगा....

वो अपने गुनाहों को माफी मांगकर धो देता था!
जब देश गंभीर संकट में होता तो वो रो देता था!!

जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है...

लाज़िम है संकट की घड़ी में शहरों ने दुत्कार दिया तो मजदूर अपने घरों की तरफ ही रुख करेंगे।असल मे सरकारों ने इन्हें वोटर लिस्ट के अलावा अन्य सरकारी आंकड़ों में लेना मुनासिब ही नहीं समझा इसलिए फौरी तौर पर राहत का कोई रास्ता नहीं तलाश पा रही है।

रेन बसेरों या सामूहिक भोजन वितरण भी इस बीमारी को रोकने के एकमात्र उपाय को पलीता ही लगायेगी।लॉक डाउन बिना तैयारी के लिया तात्कालिक निर्णय था।सरकारों को यह अहसास तक नहीं था कि सेंसेक्स,जीडीपी,उद्योगपतियों के महलों,हुक्मरानों के लुटियन जॉन के बंगलों से परे भी एक भारत बसता है।

मध्यम वर्ग को नोचकर उद्योगपतियों की तिजोरियां भरकर देश का विकास बताने का खेल मध्यम वर्ग को जिम्मेदार नागरिक बनाने के बजाय निहायत ही स्वार्थी तत्वों में बदल कर रख दिया।धन कुबेरों ने अपने दरवाजे बंद किये ही किये,साथ मे मध्यम वर्ग ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया।

सरकारों का गरीब,ग्रामीण-देहाती भारत से मुँह मोड़कर चलना संकट की इस घड़ी में भारी पड़ गया है।इस तरह लॉक डाउन का मकसद ही ध्वस्त होता नजर आ रहा है।

विदेशों से तकरीबन 15लाख लोग भारत मे आये व जो फंसे उनको खुद भारत सरकार लेकर आई।ऐसे में भारत के गरीब मजदूरों का सवाल वाजिब है कि हवाई जहाज भर-भरकर के विदेशों से महामारी सरकार खुद ही लेकर आई है तो हमे घर जाने से क्यों रोक रही है?

सरकार ने खुद अपने कुकर्मों से इस बीमारी को शहरों-कस्बों में फैलाया है।अब ये मजदूर अपने गांवों में जाएंगे तो इस बीमारी को घर-घर ले जाएंगे।सरकार ने जो विदेशों से आये लोगों को बिना जांच,क्वारण्टाइन के घर भेजा था और बहुत बड़ी गलती की थी वो गलती दुबारा न हो इसका ख्याल जरूर रखा जाएं।

जो भी प्रवासी लोग घर जाना चाहे उनके लिए सरकार बसों की सुविधा करें और गृह जिले के स्टेडियम/कॉलेज को जांच व आइसोलेशन केंद्र के रूप में उपयोग करें।खाने-पीने की व्यवस्था करें।ध्यान रहे सबकी स्क्रीनिंग व कोरोना जांच की जाएं।7दिन बाद जो नेगेटिव हो उनको तहसील के कॉलेज/स्कूल में बनाये जाँच/आइसोलेशन केंद्र पर शिफ्ट कर दें।14दिन तक वहां रहने-खाने की व्यवस्था करें व दुबारा जांच के बाद गांव की स्कूल में बनाये केंद्र पर शिफ्ट कर दें।गांव स्तर पर सुविधा सरपंच गांव के लोगों के सहयोग से करें और 7 दिन बाद तीसरे चरण की जांच के बाद घर जाने दें।

इस तरह की व्यवस्था से इन प्रवासी लोगों में भरोसा जागेगा कि हम गांव की तरफ लौट रहे है और इन चार सप्ताह की प्रक्रिया में गांव सुरक्षित बच जाएंगे।

जो राजनेता घरों में छुपकर प्रशासन पर दबाव बनाते हुए प्रवासी लोगों को घरों तक सीधे लाने का इंतजाम कर रहे है वो गांव/समाज के दुश्मन है।जो सक्षम लोग भय में भावुक होकर गांव लौटना चाहते है उनको समझना चाहिए कि यह एक-दो महीने का समय है,अस्थायी दौर है जो एक दिन खत्म होकर रहेगा।वो इस बात पर जरूर गौर करें कि दौर लौटने के बाद आपकी बुद्धि,सोच व कर्मों का भी लोग विश्लेषण करेंगे।इसलिए जल्दबाजी में भावुक होकर निर्णय न ले।

भारत सरकार व राज्य सरकारों से निवेदन है कि त्वरित गति से,बिना आरोप-प्रत्यारोप के व्यवस्था स्थापित करें।इतने दिनों में मात्र 30हजार के करीब कोरोना जांच होना बिल्ली को देखकर कबूतर द्वारा आंखे बंद करने के समान है।रईसों से निवेदन है कि आपके लिए घरों में आइसोलेट रहना ही काफी है इसलिए ग्लव्स,मास्क व सेनेटाइजर की जमाखोरी न करें।अस्पतालों में लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मी,सड़कों पर खड़े पुलिस के जवान आदि इसकी कमी से जूझ रहे है।

व्यापारियों से निवेदन है कि कालाबाजारी-मुनाफाखोरी आपका राष्ट्रीय चरित्र रहा है मगर इस संकट की घड़ी में मानवता बचेगी तभी तुम्हारा कारोबार चलेगा,इसलिए अपना चरित्र बदलने का मौका प्रकृति ने उपलब्ध करवाया है,इसे यूँ जाया न करें।

उद्योगपतियों-समृद्ध लोगों से निवेदन है कि इस संकट की घड़ी में गरीब-लाचार-बेबस लोगों की दिल खोलकर मदद को आगे आये।

"इस जगत सराय में मुसाफिर रहना दो दिन का
क्यूँ झूठा करे गुमान धन और जोभन का.."

एक दिन दुनियाँ से रुखसत होना ही है इसलिए लौटो तो नेकियों का झोला लेकर लौटो।

कोरोना से घबराएं नहीं।हौंसला रखकर लड़ें।छपने अकाल,चेचक,प्लेग आदि आपदाओं पर भी हमने विजय पाई थी और इस पर भी विजयी होंगे मगर इस घड़ी में खुद की उपयोगिता ही भविष्य के उदाहरण बनकर मानवता को राह दिखाएगी इसलिए उपयोगी बनो,बोझ नहीं।

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