माफी नहीं फैसलों की दरकार है...

साहब देश के गरीबों से माफी मत मांगिये!भूख से बिलखते बच्चों के लिए,गोद मे तड़पते बच्चों को लेकर आंसू पोंछती माताओं के लिए,होंठ कंपकंपाते लाचार-बेबस बाप के लिए इस माफी के क्या मायने है?

साहब आपको कठोर फैसले लेने के लिए कुर्सी पर बैठाया है।आप गरीबों के साथ भावुकता का मजाक मत करिए!एक तरफ मुनाफाखोरी-कालाबाजारी करके तिजोरियां भरी जा रही है और दूसरी तरफ गरीब लोग भूख से तड़प रहे है!एक तरफ अमीरों ने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिए तो दूसरी तरफ सड़कों पर भूखा-प्यासा भारत भटक रहा है!

बड़ी मिठास होती है,गरीबों के खून मे साहब,
जिसे मौका मिलता है वो पीता जरूर है!

साहब धनाढ्य परिवारों के शहजादों को भर-भरकर विदेशों से ला रहे थे तब आपको पता था कि ये लोग देश के लिए मुसीबत लाएंगे मगर आपने कठोर फैसला नहीं लिया।अपने पूर्वजों सावरकर आदि की तरह माफीनामा भर-भरकर के गुनाहों को छिपाने की कोशिश मत करिए।

देश के सभी क्रिकेट स्टेडियम को तुरंत आइसोलेशन सेन्टर में बदल डालिये।देश के कॉलेजों/स्कूलों को आइसोलेशन/जांच केंद्रों में बदल डालिये!जो लोग सड़कों पर है उनको बसों में भरकर इन स्टेडियम/कॉलेज/स्कूल में ले जाकर समुचित देखभाल की व्यवस्था करिये।

अगर धन की कमी आ रही है तो उदाहरण बता रहा हूँ।1969 व 1980 में जब देश आर्थिक संकट में फंसा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने माफी मांगने के बजाय 14 व 7बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था।आज देश संकट में है और आपसे कठोर फैसले की उम्मीद कर रहा है।

आज जो धनकुबेर लाखों की नेटवर्थ बनाये बैठे है उन कंपनियों को कब्जे में लीजिये!अगर पैसे की कमी आड़े आ रही है तो लाखों करोड़ रुपये धार्मिक स्थलों के पास पड़े है।एक फैसला लीजिये साहब और इनका राष्ट्रीयकरण करते हुए जनता के लिए दरवाजे खोल दीजिये।पैसे है,जगह है,बिल्डिंग है!ठहरने की हर सुविधा उपलब्ध है।

साहब बात संसाधनों की है ही नहीं!बात व्यवस्था की है ही नहीं!न बात गरीबों की है!बात नियत की है साहब!रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था उसी तर्ज पर भविष्य आपको इतिहास के रूप में दर्ज करेगा....

वो अपने गुनाहों को माफी मांगकर धो देता था!
जब देश गंभीर संकट में होता तो वो रो देता था!!

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