जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है...

लाज़िम है संकट की घड़ी में शहरों ने दुत्कार दिया तो मजदूर अपने घरों की तरफ ही रुख करेंगे।असल मे सरकारों ने इन्हें वोटर लिस्ट के अलावा अन्य सरकारी आंकड़ों में लेना मुनासिब ही नहीं समझा इसलिए फौरी तौर पर राहत का कोई रास्ता नहीं तलाश पा रही है।

रेन बसेरों या सामूहिक भोजन वितरण भी इस बीमारी को रोकने के एकमात्र उपाय को पलीता ही लगायेगी।लॉक डाउन बिना तैयारी के लिया तात्कालिक निर्णय था।सरकारों को यह अहसास तक नहीं था कि सेंसेक्स,जीडीपी,उद्योगपतियों के महलों,हुक्मरानों के लुटियन जॉन के बंगलों से परे भी एक भारत बसता है।

मध्यम वर्ग को नोचकर उद्योगपतियों की तिजोरियां भरकर देश का विकास बताने का खेल मध्यम वर्ग को जिम्मेदार नागरिक बनाने के बजाय निहायत ही स्वार्थी तत्वों में बदल कर रख दिया।धन कुबेरों ने अपने दरवाजे बंद किये ही किये,साथ मे मध्यम वर्ग ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया।

सरकारों का गरीब,ग्रामीण-देहाती भारत से मुँह मोड़कर चलना संकट की इस घड़ी में भारी पड़ गया है।इस तरह लॉक डाउन का मकसद ही ध्वस्त होता नजर आ रहा है।

विदेशों से तकरीबन 15लाख लोग भारत मे आये व जो फंसे उनको खुद भारत सरकार लेकर आई।ऐसे में भारत के गरीब मजदूरों का सवाल वाजिब है कि हवाई जहाज भर-भरकर के विदेशों से महामारी सरकार खुद ही लेकर आई है तो हमे घर जाने से क्यों रोक रही है?

सरकार ने खुद अपने कुकर्मों से इस बीमारी को शहरों-कस्बों में फैलाया है।अब ये मजदूर अपने गांवों में जाएंगे तो इस बीमारी को घर-घर ले जाएंगे।सरकार ने जो विदेशों से आये लोगों को बिना जांच,क्वारण्टाइन के घर भेजा था और बहुत बड़ी गलती की थी वो गलती दुबारा न हो इसका ख्याल जरूर रखा जाएं।

जो भी प्रवासी लोग घर जाना चाहे उनके लिए सरकार बसों की सुविधा करें और गृह जिले के स्टेडियम/कॉलेज को जांच व आइसोलेशन केंद्र के रूप में उपयोग करें।खाने-पीने की व्यवस्था करें।ध्यान रहे सबकी स्क्रीनिंग व कोरोना जांच की जाएं।7दिन बाद जो नेगेटिव हो उनको तहसील के कॉलेज/स्कूल में बनाये जाँच/आइसोलेशन केंद्र पर शिफ्ट कर दें।14दिन तक वहां रहने-खाने की व्यवस्था करें व दुबारा जांच के बाद गांव की स्कूल में बनाये केंद्र पर शिफ्ट कर दें।गांव स्तर पर सुविधा सरपंच गांव के लोगों के सहयोग से करें और 7 दिन बाद तीसरे चरण की जांच के बाद घर जाने दें।

इस तरह की व्यवस्था से इन प्रवासी लोगों में भरोसा जागेगा कि हम गांव की तरफ लौट रहे है और इन चार सप्ताह की प्रक्रिया में गांव सुरक्षित बच जाएंगे।

जो राजनेता घरों में छुपकर प्रशासन पर दबाव बनाते हुए प्रवासी लोगों को घरों तक सीधे लाने का इंतजाम कर रहे है वो गांव/समाज के दुश्मन है।जो सक्षम लोग भय में भावुक होकर गांव लौटना चाहते है उनको समझना चाहिए कि यह एक-दो महीने का समय है,अस्थायी दौर है जो एक दिन खत्म होकर रहेगा।वो इस बात पर जरूर गौर करें कि दौर लौटने के बाद आपकी बुद्धि,सोच व कर्मों का भी लोग विश्लेषण करेंगे।इसलिए जल्दबाजी में भावुक होकर निर्णय न ले।

भारत सरकार व राज्य सरकारों से निवेदन है कि त्वरित गति से,बिना आरोप-प्रत्यारोप के व्यवस्था स्थापित करें।इतने दिनों में मात्र 30हजार के करीब कोरोना जांच होना बिल्ली को देखकर कबूतर द्वारा आंखे बंद करने के समान है।रईसों से निवेदन है कि आपके लिए घरों में आइसोलेट रहना ही काफी है इसलिए ग्लव्स,मास्क व सेनेटाइजर की जमाखोरी न करें।अस्पतालों में लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मी,सड़कों पर खड़े पुलिस के जवान आदि इसकी कमी से जूझ रहे है।

व्यापारियों से निवेदन है कि कालाबाजारी-मुनाफाखोरी आपका राष्ट्रीय चरित्र रहा है मगर इस संकट की घड़ी में मानवता बचेगी तभी तुम्हारा कारोबार चलेगा,इसलिए अपना चरित्र बदलने का मौका प्रकृति ने उपलब्ध करवाया है,इसे यूँ जाया न करें।

उद्योगपतियों-समृद्ध लोगों से निवेदन है कि इस संकट की घड़ी में गरीब-लाचार-बेबस लोगों की दिल खोलकर मदद को आगे आये।

"इस जगत सराय में मुसाफिर रहना दो दिन का
क्यूँ झूठा करे गुमान धन और जोभन का.."

एक दिन दुनियाँ से रुखसत होना ही है इसलिए लौटो तो नेकियों का झोला लेकर लौटो।

कोरोना से घबराएं नहीं।हौंसला रखकर लड़ें।छपने अकाल,चेचक,प्लेग आदि आपदाओं पर भी हमने विजय पाई थी और इस पर भी विजयी होंगे मगर इस घड़ी में खुद की उपयोगिता ही भविष्य के उदाहरण बनकर मानवता को राह दिखाएगी इसलिए उपयोगी बनो,बोझ नहीं।

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