एक तिहाई आबादी सदा पाखंड यात्राओं व पाखंड के अड्डो पर सदा भटकती रही!लाख समझाओ मगर बुद्धिहीनों की भीड़ कहाँ समझने वाली!हर प्राकृतिक आपदा के समय लुटेरे मुनाफाखोरी,कालाबाजारी पर उतर जाते है और धर्मखोर हालात सुधरने पर दुबारा दुकानें कैसे सजे,उसकी तैयारी में लग जाते है!
मैंने धार्मिक पाखंडी,जाहिल नेताओं व सत्ता पर वर्ग विशेष के कब्जे को लेकर अनगिनत लेख लिखे,जिनको अगर प्रिंट करवाकर किताबों के रूप में बेचता तो देश की हर स्टॉल पर किताब नजर आती!मगर मैंने तय किया कि जीवन मे कभी किताब नहीं लिखूंगा क्योंकि मेरा भारत किताबें पढ़ता नहीं है और इंडिया वाले मुझे पढ़कर सतर्क हो जाएंगे और भारत पर नियंत्रण की जंजीरे कठोर करते जाएंगे!
आज कोरोना ने साबित कर दिया कि झूठे है तुम्हारे भगवान,ठगौरी है तुम्हारे सियासतदान और देश की व्यवस्था में तुम कहीं टिकते हो!विदेशों में पढ़ने वाले लुटेरों के बच्चों बोइंग विमानों से निःशुल्क लाकर घर पहुंचा दिए गए और इलाहाबाद,पटना,भोपाल, जयपुर ,मुखर्जीनगर में पढ़ने वाले गांव-देहात के,किसान-कमेरों के,भारत के बच्चे सड़कों पर रेलमपेल हुए जा रहे है!
जो विदेशों में इंडिया के लोग मोटा माल बना रहे थे उनको खुद सरकार विमानों में भर-भरकर ले आई और दिल्ली,सूरत,बैंगलोर, मुम्बई,चेन्नई आदि में गांव-गरीब तबके के लोग जो दो जून की रोटी के लिए आज पीठ पर थैला लटकाए,सिर पर गठरी लिए पैदल जत्थों में चले जा रहे है।कोई 200किमी,कोई 500किमी,तो कोई 1000किमी के सफर पर निकल चुका है।
जब यही गांव-गरीब तबके के लोग,किसान-कमेरे वर्ग के लोग पाखंड यात्राओं पर निकलते थे तब लिखता था मैं!तुम्हारा यह रास्ता नहीं है,तुम्हारी यह मंजिल नहीं है,तुम गलत दिशा में जा रहे हो!आज कोरोना का कहर बरपा तो भी पैदल यात्रा पर यही तबका है।दुःखों की अनवरत यात्राओं का सैलाब है,कभी शौक से तो कभी मजबूरी में,मगर सिलसिला जारी है।
जब राजनेताओं के पीछे भीड़ के रूप में भटक रहे थे तब कहता था कि भेड़ मत बनो!भेड़ों का नेतृत्व गधे करते है।आज भेडें भटक रही है और गधे मौज मार रहे है,महलों में मस्ती कर रहे है!उनके लिए होम आइसोलेशन ऐशो-आराम का नया प्रयोग है!तुम्हारे हिस्से भूख-भय का संयोग है।खूब झुंड के रूप में उछल-उछलकर नेताओं को मजबूत कर रहे थे मगर अब मजबूत नेता आराम फरमा रहे है और तुम कंटेनर में,पानी के टैंकर में,दूध के टैंकरों में भेड़ों की मानिद ठूंस-ठूंसकर ठेले जा रहे हो!
जब कहता था कि सियासत को धर्म का जहर मत पीने दो तब गुर्राते थे,धमकाते थे,गालियां देते थे।सियासत के माध्यम से धर्म को मजबूत करने की हुंकारे भर रहे थे।आज संकट की घड़ी में सबसे पहले धर्मखोर अपने अड्डों के ताला लगाकर भाग खड़े हुए!धर्म सियासत की हुंकारों से मजबूत नहीं हुआ करते बल्कि धर्मखोरों ने सियासत में आकर सियासत को ही निगल लिया।
मैं जिस भारत के बारे में लिखता रहा,मैं जिस गांव-देहात के बारे में लिखता रहा,जिस किसान-कमेरे के बारे में लिखता रहा वो आज सड़कों पर है।मैं जिसके हक-हिस्सेदारी की बात करता रहा वो सिर पर पोटली उठाये पैदल अपनी जड़ों की ओर चलता जा रहा है।आज भूखा प्यासा भारत रोटी मांग रहा है और इंडिया पोस्ट डेटेड पैकेज दे रहा है,आंकड़ों के हेरफेर में उलझा रहा है।
आज भारत गंभीर संकट में है,भूख-भय से तड़प रहा है और इंडिया वाले ढोंगी मंदिर निर्माण शुरू कर चुके है।जिस गौरखनाथ के लिए भरत जैसे महान राजा अपना राजसिंहासन त्याग देते थे उसी गौरखनाथ मठ से निकला ढोंगी राजसिंहासन पर बैठता है तो गरीबों के भोजन के लिए नहीं राममंदिर के लिए चेक काट रहा है!
आज भारत रोटी मांग रहा है तो मंत्री महोदय कह रहे है कि भारत वाले रामायण मांग रहे है और सुबह 9 बजते ही सप्लाई कर दी जायेगी!नेपाल में भूकंप आया तो वेटिकन वाले बाबा बोले कि नेपाल बाइबिल मांग रहा है,दुनियाँ के बुद्धिजीवियों ने लपेटा तो माफी मांग ली मगर इंडिया वालों में कोई शर्म नहीं है,कोई नैतिकता नहीं है,इंसाफ की तो बात ही मत करिए।भेदभाव,इंसानियत का कत्ल तो इंडिया का न्यायिक चरित्र है!
बस भारत के लोग अभी भी समझ ले।अब भी देर नहीं हुई है!हजारों सालों के कोरोना के साथ इस नव कोरोना को एक साथ भी हराया जा सकता है मगर सबसे पहले खुद पर भरोसा करना होगा,हौंसला बुलंद करना होगा।वो चरित्र,वो बल,वो पुरुषार्थ,वो सामर्थ्य आज भी भारत के लोगों में है जिसके बूते ऐसे 5-10 कोरोना से एकसाथ लड़कर जीत सकते है।
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