पाखंड का चंगुल


आज फिर दुखी मन से पाखंड तले मरे लोगों के बारे में लिखना पड़ रहा है।जब भी धर्म कम ढोंगियों के अड्डे ज्यादा लगने वाले इन खोखले कब्रगाहों पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है तो इस तरह के हादसे लगातार होते रहे है लेकिन हिंदुस्तान की जनता तर्क के बजाय चमत्कार में विश्वास करती रहेगी तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे।यह उसी जयगुरुदेव के चेलों ने किया जिसके एक चेले ने 2014 में मथुरा में जवाहर बाग़ पर कब्ज़ा जमा लिया था और बाद में कब्ज़ा हटाने की प्रक्रिया में 2पुलिसवालों सहित 24 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।कल उसी जयगुरुदेव के चेलों ने सत्संग का आयोजन बनारस में किया था जिसके लिए 4000लोगों के शामिल होने की अनुमति दी गई थी लेकिन कहते है न कि आस्था का निर्णय कानूनों की किताबों में नहीं होता ।बताया जा रहा है कि 2 से 2.5 लाख लोग एकत्रित हुए और अव्यवस्था के कारण मची भगदड़ में  24 लोगों ने जान गंवा दी और 60 लोग घायल हुए। कुछ समय पहले मुझे किसी ने पूछा कि ये हादसे कब रुकेंगे?मैंने उस समय बताया था व् आज दुबारा बता रहा हूँ।जब इस देश से गरीबी मिट जायेगी व् शिक्षा का उजियारा आ जायेगा तो ऐसे हादसे रुक जायेंगे।ऐसे पाखंड के अड्डों पर जाने वाले लोग गरीबी से त्रस्त होते है।ये लोग अपने बच्चों की पढाई,घर में खुशहाली,बेटी की शादी के इंतजाम आदि की मन्नतें मांगने जाते है।जब गरीबी का दुष्चक्र टूट जाएगा तो ये जरूरतें अपने आप पूरी होती जाएगी व् वरदान के बजाय कर्म पर भरोसा बढ़ने लग जायेगा।अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल जायेगी तो ये बच्चे इन अड्डों की सच्चाई जान जायेंगे व् अपनी अगली पीढ़ी को तो इन अंधविश्वासों से दूर कर ही देंगे ,उनके साथ-साथ अपने माँ बाप को भी समझायेंगे कि आप घर में ,खेत में पेड़-पौधे लगाकर उनको पानी पिलाओ व् छायां में स्वर्ग का मजा लो। आस-पड़ोस में किसी गरीब को खाना खिलाकर,उसकी मदद करके मुक्ति का टिकट हासिल कर लो!पाखंड गरीबी से त्रस्त जनता के बिगड़े मानसिक संतुलन का उपयोग करता है।90%के करीब जनता इन्ही कारणों से इन पाखंड के अड्डों की तरफ खींची चली जाती है। बाकी बचे 10%लोग ठगों के एजेंट,ट्रांसपोर्ट वाले,ठेले खोमचे वाले,होटलों वाले होते है इनके साथ-साथ मुफ्त में खाना -पीना हासिल करने वालों की भीड़ भी जुट जाती है।इन धर्म के नाम पर बने अड्डों पर चंदा भी खूब उड़ाया जाता है। बनारस के राजनेताओं ने भी चुनावों में गुरुदेव की कृपा पाने के लिए लोगों को एकत्रित होने के लिए उकसाया ही होगा क्योंकि बिना बाबाओं के सहयोग के चुनाव जीतने में दिक्कत आ ही जाती है।हर धर्म सभा में राजनेता व् राजनैतिक सभा में धर्मगुरु संयोग से आ खड़े नहीं होते है!धर्म व् सत्ता का महागठबंधन सदियों से चलता आ रहा है।सत्ता भी शोषणकारी होती है व् धर्म भी शोषक है और जब दोनों साथ हो जाते है तो जनता के सामने इससे पार पाने के सारे विकल्प ध्वस्त हो जाते है व् एक मात्र विकल्प बचता है वो होता है क्रांति! लेकिन क्रांति अंतिम व् भयावह विकल्प होता है जिसमे पहले दुश्मनो को तय करके चुन चुनकर मारा जाता है।लेकिन देश की जनता न उतनी आक्रोशित हो पाई है न सत्ता व् धर्म का गठजोड़ उतना कमजोर हुआ है कि क्रांति की आहट सुनकर हथियार डाल दे। चाहे जोधपुर की चामुंडा माता के मंदिर में भगदड़ का मामला हो या पटना में छठ पूजा वाले दिन गांधी मैदान का मामला हो!चाहे उज्जैन में महाकाल में मची भगदड़ का मामला हो !सब जगह मरी गरीब अंधविश्वासी जनता ही ।ये अड्डे तो फिर से गुलजार होकर यूँ ही चल रहे है व् चलते रहेंगे जब तक जनता सबक न ले लें और सबक लेने की काबिलियत हासिल होगी गरीबी व् अशिक्षा के दुष्चक्र टूटने से। तो हम हमारी अर्थात जागरूक लोगों की ऊर्जा नियंत्रण रेखा पार करने में लगाने के बजाय गरीबी की रेखा पार करने पर खर्च करनी होगी।देश में नफरत का जहर फ़ैलाने के बजाय शिक्षा का उजियारा फैलाएं जिससे गरीब-अज्ञानी जनता पाखंड के चंगुल से बाहर निकल सके
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