डरा-धमका कर तुम मुझे वफ़ा करने को कहते हो
कहीं तलवार से भी पाँव का कांटा निकलता है!
जिसे भी जुर्म-ए-गद्दारी में तुम कत्ल करते हो
उसकी ही जेब से क्यूँ मुल्क का झंडा निकलता है?
मुनव्वर राणा का यह शेर आजकल किसानों के लिए सटीक बैठता है। जिस कौम के लहू में ईमान बहता है, जो मिट्टी को भी माँ समझते है उसको तुम देशद्रोही व् आतंकवादी कहते हो! जिस देश की सीमाओं की रक्षा के लिए 90 %बलिदान जो कौमे देती है उनके ही परिवार वालों को तुम दरकिनार करते हो!बहुत भयावह हालात हो जायेंगे इस देश के!
नफरतें घोल दी अहले सियासत ने लेकिन
पानी आज तक उस कुए से मीठा निकलता है.......
आगे का पता नहीं!अति हर जगह बुरी होती है।सब्र बहुत है इन लोगों में लेकिन जब परीक्षा की घडी आई या सब्र की सीमाएं टूटी तो न सियासत बचेगी ,न तख़्त-ओ-ताज बचेगा!मुझे पता है...
हुकूमत मुंह भराई की रस्म से खूब वाकिफ है
यह हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है
हमारी किसान कौम के शाही कुत्ते टुकड़ों की तलाश में निकल चुके है।हमे बखूबी पता है कि कौनसा कुत्ता किसके दरवाजे पर दुम हिला रहा है फिर भी हम खामोशियों की चादर ओढ़कर सोये हुए है।जब पूरी की पूरी किसान कौम को राष्ट्रवाद के प्रमाणपत्र हासिल करने की दुकान के आगे पंक्ति में खड़ा किया जा रहा है और बुझदिल लोग तमाशा देख रहे है!अजीब विडंबना है चीर निद्रा में सोने की!
कुछ दिन और बौझ उठा लो भाई
फिर ये गद्दार मय्यसर नहीं होंगे।
हर जगह मंच-महफिले सजेगी
मगर ये कौम के सौदागर नहीं होंगे।।
कहीं तलवार से भी पाँव का कांटा निकलता है!
जिसे भी जुर्म-ए-गद्दारी में तुम कत्ल करते हो
उसकी ही जेब से क्यूँ मुल्क का झंडा निकलता है?
मुनव्वर राणा का यह शेर आजकल किसानों के लिए सटीक बैठता है। जिस कौम के लहू में ईमान बहता है, जो मिट्टी को भी माँ समझते है उसको तुम देशद्रोही व् आतंकवादी कहते हो! जिस देश की सीमाओं की रक्षा के लिए 90 %बलिदान जो कौमे देती है उनके ही परिवार वालों को तुम दरकिनार करते हो!बहुत भयावह हालात हो जायेंगे इस देश के!
नफरतें घोल दी अहले सियासत ने लेकिन
पानी आज तक उस कुए से मीठा निकलता है.......
आगे का पता नहीं!अति हर जगह बुरी होती है।सब्र बहुत है इन लोगों में लेकिन जब परीक्षा की घडी आई या सब्र की सीमाएं टूटी तो न सियासत बचेगी ,न तख़्त-ओ-ताज बचेगा!मुझे पता है...
हुकूमत मुंह भराई की रस्म से खूब वाकिफ है
यह हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है
हमारी किसान कौम के शाही कुत्ते टुकड़ों की तलाश में निकल चुके है।हमे बखूबी पता है कि कौनसा कुत्ता किसके दरवाजे पर दुम हिला रहा है फिर भी हम खामोशियों की चादर ओढ़कर सोये हुए है।जब पूरी की पूरी किसान कौम को राष्ट्रवाद के प्रमाणपत्र हासिल करने की दुकान के आगे पंक्ति में खड़ा किया जा रहा है और बुझदिल लोग तमाशा देख रहे है!अजीब विडंबना है चीर निद्रा में सोने की!
कुछ दिन और बौझ उठा लो भाई
फिर ये गद्दार मय्यसर नहीं होंगे।
हर जगह मंच-महफिले सजेगी
मगर ये कौम के सौदागर नहीं होंगे।।
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