महिलाओं को बराबरी का हक़ कैसे मिले ?

एक मजेदार बहस चल रही थी। मैं इस बहस को मजेदार इसलिए कह रहा हूँ की बहस बड़ी गंभीरता से हो रही थी लेकिन समस्या की जड़ पर प्रहार करके हल खोजने के बजाय समस्या के समाधान के लिए सिर्फ दिखावे के लिए कानून बनाने पर जोर दिया जा रहा था। बहस का मुद्दा था कि महिलाओं को बराबरी का हक़ कैसे मिले? महिलाओं पर अत्याचारों में कैसे कमी आये? अपवाद दोनों तरफ होते है लेकिन बहुत से गुण दोनों में समान रूप से विद्यमान रहते है। पुरुष अभी विकास के निम्न स्तरीय दौर से गुजर रहा है। महिलाएं विकास में पुरुषों से कई कदम आगे है सहनशीलता, कर्तव्यनिष्ठा,अपनापन, ममता आदि ऐसे अनेकों गुण है जो एक औरत को पुरुष के मुकाबले कहीं अव्वल दर्जे का विकसित इंसान बनाते है। एक गुण पुरुषों में अलग होता है वह है पशुत्व ! पशुता का गुण जब तक पुरुषों में रहेगा तब तक महिलाओं के विकास व उच्चता प्राप्त सोपानों का सम्मान नहीं कर सकता। बहस इस बात पर होनी चाहिए कि पुरुषों के अंदर बैठा पशु बाहर कैसे निकले? इसको निकालने के उपाय ढूंढें जाने चाहिए। इसकी शुरुआत माँ-बाप अपने बच्चों से कर सकते है। लड़की को सहनशीलता सिखाते हो वह अच्छी बात है। उद्दंडता सिखाकर लड़कों का मुकाबला नहीं किया जा सकता। ध्यान लड़कों पर दिया जाना चाहिए। लड़कों के अंदर पशुगुण पैदा होने से रोककर उनको सहनशील बनाओ व एकदूसरे को सम्मान देना सिखाओ। किसी भी सभ्यता में एकाएक किसी संवैधानिक या नैतिक कानून से बदलाव नहीं आ सकते। अच्छे बदलाव पीढ़ी दर पीढ़ी स्थापित किये जाते है। हाँ कुछ सभ्यता का बुरा करना हो तो बिना सोचे-समझे कानून थोप दो। जरूर दरारे बढ़ने लग जाएगी। हमे संघर्ष को ख़त्म करने की और बढ़ने के लिए पहले मानसिकता पर प्रहार करना होगा।
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 नवभारत टाइम्स 

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