बेटा तूँ पढ़ |

तेरे सहारे मैं जिन्दा हूँ।मैं चाहती हूँ कि तूँ पढ़-लिखकर बड़ी नौकरी करे।जब तूँ पैरों पर खड़ा होना सीख रहा था तब तेरे पिताजी इस दुनियां को छोड़ गए।एक गरीब किसान की विधवा के पास दो पैर व् दो हाथ के सिवा कुछ नहीं होता!तेरे चेहरे में मेरी जिंदगी का अंत देखती हूँ। बचपन गरीबी में बीता।मेरी शादी सौदे का शिकार हो गई।तूँ पैदा हुआ तो मेरी आँखों में ख़ुशी के आंसू टपके थे।लेकिन दुनियां बड़ी बेरहम है....तूँ ही मेरा सपना है तूँ ही मेरा वजूद।तूँ जिन्दा रहने की वजह है तो तूँ ही बुढ़ापे की उम्मीद।बेटा...तूँ ही मेरी दुनियां है। बुझदिल लोग अपने कर्मों से इस जहाँ से विदा ले लेते है लेकिन मैं बुझदिल नहीं हूँ।तूँ आगे बढ़......जब तेरी माँ तेरे साथ है तो तुझे दुनियां की कोई ताकत नहीं रोक सकती।तूँ चल....तूँ पढ़....जो लोग आज तुझे नकारते है वो एक दिन तुझे सलाम ठोकेंगे।मैं माँ हूँ तेरी....माँ कभी झूठा दिलासा नहीं देती....आधी रोटी खाकर तेरी पढाई का इंतजाम करुँगी।सप्ताह में दो दिन तड़का लगाकर बचत करुँगी लेकिन तेरे खर्चे का इंतजाम करुँगी। तूँ पढ़ बेटा....तेरी पढाई व् तेरी सफलता के अलावा मेरे पास जिन्दा रहने की कोई उम्मीद की किरण नहीं है.....रामू सोचता ही रह गया।हँसते-खेलते बचपन की जगह जिम्मेवारियों का बोझ!भारी मन से स्कूल का बैग लिए चला जाता है।जहाँ जगह-जगह बच्चे अपनी मस्ती में खेल खेल रहे है वहीँ रामू डबडबाई आँखों के साथ दिल में गुस्से को छिपाये हुए रोज स्कूल जाता है।रात-दिन अपनी पढाई में लगा रहता है।चाँद की रौशनी में भी किताबे टटोलता रहता है।क्लास में हमेशा टॉप आता है।सारे बच्चों का चहेता हो जाता है।मास्टरजी भी आते-जाते रामू की माँ को कह जाते है कि भाभी आपका लड़का पढाई में अच्छा है।स्कूल भेजना बंद मत करना.....रामू ठंडी-बासी खाकर स्कूल चला जाता है।स्कूल से घर लौटता है तो खाने के लिए कुछ नहीं होता।गुस्से में बैग फेंककर खेत में चला जाता है।जहाँ उसकी विधवा माँ दो जून की रोटी की जुगाड़ में हाड़-तोड़ मेहनत कर रही होती है। रामू माँ की तरफ गुस्सा जाहिर करते हुए कहता है कि माँ तूने मेरे लिए घर पर रोटी नहीं रखी!मैं भूखा हूँ.....माँ  अपनी ओढ़नी से आंसू छिपाते हुए कहती है "बेटा रोटी मैं साथ ले आई थी।जा खेत की मेड पर रखी है।खा ले.....रामू रोटी को खाते हुए सोचता है कि यह रोटी माँ के हाथ की नहीं है.....माँ ने रोटी क्यों नहीं बनाई?यह रोटी कहाँ से आई?रामू रोटी तो खा लेता है लेकिन बाद में माँ के आँचल से लिपट-लिपटकर खूब रोता है।माँ दिलासा देती है...बेटा चुप हो तेरी दीदी को भेजा है मामाजी के पास 5 किलो धान लाने के लिए।आती ही होगी। शाम का खाना मेरे हाथों से बनाकर खिलाऊँगी।थोड़े दिनों की बात है।तूँ पढ़ बेटा....तेरी पढाई ही मेरा स्वर्ग है। जिस दिन तेरी नौकरी लग जायेगी उस दिन मेरा जीवन सफल हो जायेगा। इस जालिम दुनियां की ठोकरे खाता-खाता यह परिवार एक दिन गाँव छोड़ने पर मजबूर हो जाता है।गरीबों के लिए दूसरी जगह आशियाना बसाना आसान नहीं होता है लेकिन जिन लोगों के दिलों में जूनून हो उनके लिए भगवान खुद मदद को एक फरिश्ता भेज देता है।ऐसा ही इस गरीब परिवार के साथ होता है।एक सेठ अपने खेत पर इनको रोजगार दे देता है।जब माँ किसी की चौखट पर जाकर अपने बच्चे के लिए मदद मांगती है तो उसकी मदद चौखट के उस पार रह रहे इंसान के बजाय खुद भगवान् करने पहुँच जाता है।यही बात रामू के ऊपर सटीक बैठती है।दुनियावी रिश्ते-नाते से दूर एक इंसान रामू की पढाई का बीड़ा उठा लेता है और अपना खेत माँ को मेहनत के लिए सौंप देता है। रामू की स्कूल बदल जाती है।दोस्त बदल जाते है।अध्यापक बदल जाते है।लेकिन नहीं बदलता तो सिर्फ रामू का शिक्षा के प्रति जूनून।चंद दिनों में ही हर कोई रामू को चाहने लग जाता है।रामू दुनिया की चकाचौन्ध से दूर अपने रास्ते पर चलता जाता है।क्लास टॉप करता है।सेठ विधवा माँ को हमेशा अपनी माँ समझकर सुख-दुःख में साथ देता है।संकट के समय हमेशा साथ खड़ा हो जाता है।कहता है कि माताजी रामू अब सिर्फ आपका बेटा ही नहीं मेरा छोटा भाई है।आप चिंता मत करो.......रामू हर एक बात का मरहम समझता है।अवसर का सदुपयोग करता है। एक दिन रामू अपनी पढाई पूर्ण करके दिल्ली नौकरी के लिए परीक्षा देने जाता है।किराया भी वो सेठ ही देता है।माँ आँखों के आंसू छिपाते हुए कहती है कि बेटा दिल्ली बहुत दूर है। तूँ बच्चा है....ध्यान से जाना...उस विधवा माँ का सबकुछ रामू पर ही दांव लगाया हुआ था।कुछ अनहोनी हो गई तो जिंदगी ख़त्म!रामू को खुद पर भरोसा था।रामू ठोकरे खा-खाकर इतना समझदार हो चुका था कि वो यह समझ सके कि जिसको खुद पर भरोसा न हो उस पर खुदा भी भरोसा नहीं कर सकता.....रामू हरी मिर्च की चटनी व् रोटी बांधकर चल पड़ा दिल्ली की ओर......रामू को पहली ही बार में सफलता मिल गई।रामू सैंकड़ों सपनों को अपनी आँखों में स्थापित करता हुआ घर की तरफ चल पड़ा....माँ का हर कष्ट ,माँ का हर आंसू रामू के सपनो की नींव रख रहे थे।जब भी ट्रेन किसी स्टेशन पर रूकती तो रामू स्टेशन के बाहर अपनी माँ के खिलते चेहरे को देखने को बेताब हो जाता।लेकिन कुछ यात्रियों की गहमागहमी होती और ट्रेन फिर से चल पड़ती।इस तरह रामू जागता-सोता अपने घर पहुँच जाता है।माँ को कहता है "माँ मेरी नौकरी लग गई है....अब आपका हर सपना मैं पूरा करूँगा ...."लेकिन रामू की माँ पत्थर सी खड़ी रही।रामू को गले भी नहीं लगा पाई।रामू भी एकदम चुप हो गया।चारों तरफ एकदम सन्नाटा.....तभी रामू की माँ बोली"बेटा तेरे चेहरे की मुस्कान सिर्फ मुझे  ख़ुशी देने के लिए है या हकीकत में तूँ खुश है?" रामू को पहले से ही पता था कि माँ इतना जल्दी भरोसा नहीं करेगी इसलिए अपने एक दोस्त को साथ लेकर गया था ताकि वो सबकुछ समझा सके.....लेकिन बात दोस्त से भी नहीं बनी।रामू की जिंदगी का सुनहरा वो पल भी दर्द भरी जिंदगी की जंग का भेंट चढ़ गया।रामू दुःख झेलने का आदि हो चूका था इसलिए चुप हो गया।चार दिन बाद में रामू अपनी माँ के चरण स्पर्श करते हुए फूट-फूट कर रोया....अपने आंसू पोंछते हुए विदा लेकर गाँव के बस स्टैंड की तरफ चला गया।माँ तिरछी नजर से राह निहारती रह गई.....न रामू कुछ कह पाया और न माँ कुछ कह पाई......6 महीने बाद रामू जब घर लौटा तो माँ गले लगाकर फूट-फूट कर रोई।माँ ने रामू को यह कहते हुए पानी की गिलास थमाई कि बेटा अब तेरी शादी हो जाये तो मेरा जीवन सफल हो जाये।तेरी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है।मैं तो मेरी जिंदगी के अंतिम पड़ाव में हूँ।मैं जाते-जाते तेरा गुलजार परिवार देखना चाहती हूँ।फिर रामू की शादी हो जाती  है.....रामू के बच्चे हो जाते है......रामू सोचने लगता है कि अब जिंदगी खुशहाल है.......पत्नी भी इंसानी मूल्यों को समझने वाली मिल जाती है।पूरा परिवार हँसी-ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत करते है। रामू के पास आज गाडी है,घर है,सुन्दर पत्नी है,दो बच्चे है।सब कुछ है।रामू अपनी 42"LCD टीवी को देखकर बहुत इतराता है लेकिन एक दिन दोपहर को यूपी के जौनपुर में एक बहू द्वारा लकवाग्रस्त सासू को पिटते हुए देखकर सुन्न हो जाता है....बेटा असहाय होकर सिर्फ रिकॉर्डिंग करता है और माँ की बेरहमी से पिटाई होती है........आगे के तर्क-वितर्क इस मायावी दुनिया के हवाले...........


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