जब नगरीकरण बढ़ने लगता है तो एकल परिवार की धारणा कुलांचे मारने लगती है। जहाँ पति-पत्नि व् उनके बच्चों के अलावा घर में किसी और का रहना मंजूर नहीं होता।समाजशास्त्री एकल परिवार की परिभाषा व् नफे-नुकसान की पोथी रखकर किनारे हो जाते है।इनसे उत्पन्न समस्याओं का समाधान खोजने की कोई कोशिश ही नहीं करता।जिस देश में बुद्धिजीवी चुनी हुई घटनाओं पर छाती कूटकर कानून बनवाने की फितरत पाल लेते है व् नेता बिना किसी सामाजिक सर्वेक्षण के इन ढकोसलों से दबाव में आकर कानून पारित कर दे तो समाज में हर जगह कुंठा व् संघर्ष पनपने लग जाता है। जब यही संघर्ष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच हो जाये तो भयानक रूप अख्तियार कर लेता है।धार्मिक बंधनो व् समाज की मान्यताओं में बंधी सासू तथा आधुनिक टीवी सीरियलों की फूहड़ स्वच्छंद्धता की पैदाइश बहू का संघर्ष आजकल हर जगह अपना जहर बिखेरता प्रकट होता है।यूपी के बिजनोर में बहू का ऐसा वीडियो सामने आया है जिसका रूप देखकर बगदादी भी आत्महत्या करने को मजबूर हो जाये।इस तरह अपनी सासू माँ की पिटाई!यह बहू नारी के रूप में एक शैतान है। जब देश में राजनीति साधने व् अपने चहेतों को सत्ता की बंदरबांट करने के लिए आयोग व् कमेटियां बनने लग जाती है तो समाज के हर तबके में आपसी संघर्ष पैदा होने लगता है। राष्ट्रीय महिला आयोग राज्य महिला आयोग महिला व् बाल विकास मंत्रालय,महिला थाने आदि सब महिलाओं व् पुरुषों के बीच नफरत की आग भड़काने के लिए एक षड्यंत्र के तहत खड़े किये गए है। शिक्षा सामाजिक जागरूकता कर्तव्यबोध व् जिम्मेवारियों के प्रति आगाह करने के बजाय कानून की छड़ी पकड़ाकर संघर्ष में धकेल दिया गया जिसके गंभीर परिणाम सामने आ रहे है।
दहेज़ प्रताड़ना के 90%मामले सिर्फ सबक सिखाने के लिए दायर किये जाते है। तलाक के 50%से ज्यादा मामले शादी के बाद अवैध संबंधो के कारण दायर किये जाते है। चाहे वो पति की तरफ से हो या पत्नी की तरफ से। पुलिस को भी पता होता होता है कि मामला झूठा है लेकिन भांड मीडिया व् मोमबत्ती ब्रिगेड के दबाव में आकर निर्दोषों को पकड़कर कोर्ट में पेश कर देती है। जब फिजाओं में महिला अत्याचारों की कर्कश ध्वनि गूँजती हो तो जज भी किसी और ग्रह के प्राणी नहीं है जो जमानत देने की हिम्मत जुटा ले। सालों-साल कोर्ट में केस चलते है। पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। जिंदगी का कीमती समय जेल की दीवारों में बर्बाद हो जाता है। सालों बाद कोर्ट जब मामला ख़ारिज करता है तब तक परिवार ख़त्म हो चुका होता है। फिर पुलिस को झूठे केस के आरोप में उस महिला के खिलाफ केस दर्ज करना होता है जिसमे 7 साल तक की सजा का प्रावधान है लेकिन भारतीय इतिहास में एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया जिसमे पुलिस ने यह कार्यवाही की हो। एक तरफ लिंग भेद को मिटाने की मुहीम चल रही है तो दूसरी तरफ कुकुर्मुतों की तरह लिंग आधारित संगठन खड़े किये जा रहे है।जनता के पैसों को जनता के बीच में ही जहर घोलने में खर्च करना कहाँ का न्याय है? लिंग आधारित कानूनों को ख़त्म किया जाना चाहिए। लिंग आधारित तमाम संगठनो को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। सामाजिक समरसता को ख़त्म करने वाले इन वैचारिक आतंकियों का सफाया होना जरुरी है । कानून का इतना भय कि एक बेटा अपनी माँ को पिटते हुए बचा नहीं पाता।बीच में बोलने की कोशिश की तो कानून है न दहेज़ प्रताड़ना वाला,घरेलु हिंसा अधिनियम,पिता की सम्पति में से भी 50%हक़ वाला।खुद चोरी छिपे वीडियो बनाकर मीडिया के हवाले करता है।महिला संगठनो वाली शर्म महसूस करती है वीडियो देखकर। क्यों शर्मिंदा हो रही हो मैडम!कानूनों का मकड़जाल बनाने के लिए मोमबत्ती मार्च का नेतृत्व तुम ही तो कर रही थी!50%घरों में आज यही हकीकत है।बुजुर्ग घरों के कोने में सहमे सहमे पड़े है।उनकी आँखों के आंसू या तो सुख गए है या डर के मारे टपक ही नहीं पाते है।बीमार हो गए तो दवा नहीं मिलती। ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो एक दो मार्च अब इन बुजुर्गों के लिए भी निकाल ही डालो..........कहते है कि बुजुर्ग हमारी धरोहर है।जिंदगी का संग्रहालय है।संग्रहालय इस तरह नहीं उजाड़े जाते.......
दहेज़ प्रताड़ना के 90%मामले सिर्फ सबक सिखाने के लिए दायर किये जाते है। तलाक के 50%से ज्यादा मामले शादी के बाद अवैध संबंधो के कारण दायर किये जाते है। चाहे वो पति की तरफ से हो या पत्नी की तरफ से। पुलिस को भी पता होता होता है कि मामला झूठा है लेकिन भांड मीडिया व् मोमबत्ती ब्रिगेड के दबाव में आकर निर्दोषों को पकड़कर कोर्ट में पेश कर देती है। जब फिजाओं में महिला अत्याचारों की कर्कश ध्वनि गूँजती हो तो जज भी किसी और ग्रह के प्राणी नहीं है जो जमानत देने की हिम्मत जुटा ले। सालों-साल कोर्ट में केस चलते है। पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। जिंदगी का कीमती समय जेल की दीवारों में बर्बाद हो जाता है। सालों बाद कोर्ट जब मामला ख़ारिज करता है तब तक परिवार ख़त्म हो चुका होता है। फिर पुलिस को झूठे केस के आरोप में उस महिला के खिलाफ केस दर्ज करना होता है जिसमे 7 साल तक की सजा का प्रावधान है लेकिन भारतीय इतिहास में एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया जिसमे पुलिस ने यह कार्यवाही की हो। एक तरफ लिंग भेद को मिटाने की मुहीम चल रही है तो दूसरी तरफ कुकुर्मुतों की तरह लिंग आधारित संगठन खड़े किये जा रहे है।जनता के पैसों को जनता के बीच में ही जहर घोलने में खर्च करना कहाँ का न्याय है? लिंग आधारित कानूनों को ख़त्म किया जाना चाहिए। लिंग आधारित तमाम संगठनो को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। सामाजिक समरसता को ख़त्म करने वाले इन वैचारिक आतंकियों का सफाया होना जरुरी है । कानून का इतना भय कि एक बेटा अपनी माँ को पिटते हुए बचा नहीं पाता।बीच में बोलने की कोशिश की तो कानून है न दहेज़ प्रताड़ना वाला,घरेलु हिंसा अधिनियम,पिता की सम्पति में से भी 50%हक़ वाला।खुद चोरी छिपे वीडियो बनाकर मीडिया के हवाले करता है।महिला संगठनो वाली शर्म महसूस करती है वीडियो देखकर। क्यों शर्मिंदा हो रही हो मैडम!कानूनों का मकड़जाल बनाने के लिए मोमबत्ती मार्च का नेतृत्व तुम ही तो कर रही थी!50%घरों में आज यही हकीकत है।बुजुर्ग घरों के कोने में सहमे सहमे पड़े है।उनकी आँखों के आंसू या तो सुख गए है या डर के मारे टपक ही नहीं पाते है।बीमार हो गए तो दवा नहीं मिलती। ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो एक दो मार्च अब इन बुजुर्गों के लिए भी निकाल ही डालो..........कहते है कि बुजुर्ग हमारी धरोहर है।जिंदगी का संग्रहालय है।संग्रहालय इस तरह नहीं उजाड़े जाते.......
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