इस कुर्सी प्रधान देश में अब कृषि की कोई जरुरत नहीं है। जब झूठे वादों व् इरादों से देश चल सकता है तो मेहनत व् रहम की जरुरत कहाँ बच जाती है! हर प्राकृतिक आपदा को झेलता है किसान, हर विकास की पहली सीढ़ी किसान की गर्दन मरोड़कर बनाई जाती है, हर मंजिल का रास्ता किसान के खेत व् श्रम के बिना अधूरा रह जाता है।किसान का जवान बेटा फिल्मो, स्वीमिंग पूल,बार, डिस्को से मनोरंजन किये बगैर वहां उपलब्ध हर चीज़ में अपना योगदान दे देता है। किसान की बेटी किसी प्रकार की बड़ी पोस्ट या गाड़ी या मनोरंजन के साधनो की चाहत नहीं रखती, उसका एक ही सपना होता है कि इस बार फसल अच्छी हो जाये और साहूकार का कर्जा उतर जाये ताकि अगले साल मेरी शादी का इंतजाम हो सके। बिना छाते के बरसात में काम करता किसान, बिना जैकेट-ब्लैंकेट के सर्द हवाओं में चलता किसान, बिन छाँव व् अधनंगे बदन से झुलसती गर्मियों में काम करता किसान।खून पसीने की असली कमाई उसे ही कहते है। कामचोरी नाम का शब्द तो शायद ऊपर वाला ही शब्दकोष में डालना भूल गया। लेकिन आधुनिक मायावी दुनिया में हमेशा सताया जाने वाला प्राणी किसान। हर नोंचने वाले की दृष्टि इस सरल व् भोले भाले किसान नामक प्रजाति पर ही टिकी रहती है। किसान इतना भोला कि कभी धर्म के नाम पर ठग लिया जाता है तो कभी मनमोहक सपनो के नाम पर। कुछ इसी जमात से निकले राजनेता अपने आपको गर्व से किसान नेता कहते है लेकिन खेत में काम करते अपने बाप के साथ भी फोटो खिंचवाने में शर्मिंदगी महशूस करते है। जिसको जब मौका मिला तब लूट लिया। जिनका काम पूजा, धर्म,शिक्षा था वो आज प्रॉपर्टी डीलर बन गया। जमीन किसकी? प्रॉपर्टी किसकी?लेकिन माल बनाने का तरीका उसी ने ईजाद कर लिया, दुनिया पेटेंट व् कॉपीराइट एक्ट से चलने लग गई। 15 दिन बिल लटकने से आपका विकास रुक रहा था, लेकिन अब इस प्राकृतिक आपदा पर आपके मुंह पर ताला किसने लटका दिया? विकास जरुरी है, जीडीपी का भी व् सेंसेक्स का भी लेकिन याद रखना सेंसेक्स के आंकड़ों को देखते देखते आपकी गर्दन टेढ़ी हो जायेगी लेकिन पेट की आग यही किसान, यही भूखा-नंगा फ़कीर ही बुझाएगा। शोषण का यह तरीका ठीक नहीं है।कसाई भी मुर्गे की गर्दन काटते वक्त अपनी नजरे कहीं और घुमा लेता है लेकिन आप तो इसमें भी मनोरंजन ढूँढने लग गए!किसान कुछ बात रखे तो उसी को मजाक बना देते हो।किसान का शिकार इन तथाकथित किसान नेता के कंधे पर बंदूक रखकर कर रहे हो वो बेहद शर्मनाक है।आपको धान सस्ता चाहिए,आपको खाद्य तेल सस्ता चाहिए,आपको फल सब्जियों की कीमत चुकाने में परेशानी है लेकिन किसानो को सब्सिडी पर आपको एतराज है।कैसे मिलेगा सस्ता?अपनी बालकनी में पैदा करने का नया अविष्कार क्यों नहीं कर लेते? उस बेबस किसान की बेबसी पर तनिक भी रहम नहीं आती।उनके नंगे पाँव घूमते बच्चों को देखकर आपका दिल नहीं पसीजता,और किसानों की आत्महत्या पर आपको किसी प्रकार के मानव अधिकारों का हनन भी नजर नहीं आता?अंत में एक ही बात कहना चाहता हूँ...
चेहरे पर अपने जो,दोहरा नकाब रखता है।
किसान उनकी चालाकियों का हिसाब रखता है.....
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