बिचौलिए की भूमिका में भारत सरकार, मुर्दा विपक्ष और जनता बेबस-लाचार!

मोदी सरकार ने एक-एक करके सारे सरकारी उपक्रम बेच दिए है या निविदाएं हो रही है!आजादी के बाद देश के करोड़ों मेहनतकशों के खून पसीने से बने इन उपक्रमों का बिकना कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है!ऐसे देश मे जहाँ एक तिहाई आबादी गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही हो उनको सरकारी सरंक्षण मिलने के बजाय निपट लुटेरे पूंजीवादीयों के हवाले कर दिया गया!

भारत माता सिर्फ नारों से नहीं बनती है बल्कि सरकारों में मातृत्व की भावना होनी चाहिए।ऐसी माता किस काम की जो अपने भूखे बच्चों को भेड़ियों के आगे फेंक दें!लोकतंत्र में लफंगे सरकार में आ जाते है तो इस तरह के दृश्य आम हो जाते है!भारत कोई भूगोल का टुकड़ा नहीं बल्कि 130करोड़ नागरिकों का देश है और नागरिक के बेहतर भविष्य के लिए सरकारें चुनी जाती है!

आज भारत सरकार चला रहे लोगों को यकीन हो गया है कि विपक्ष नाम की इस देश मे कोई चीज बची नहीं है।विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है और उनका दायित्व बनता था कि जब पहले उपक्रम को बेचने की तैयारी की तो देश की जनता के बीच जाती और देशभर में आंदोलन खड़ा करती मगर कांग्रेस ने ऐसा करने के बजाय मात्र मीडिया बाईट को विपक्ष भी भूमिका मानकर बाईपास दे दिया।

कुछ क्षेत्रीय दल अपने वजूद के लिए जूझ रहे है तो कुछ बिखर चुके है।ये अपने-अपने कबीलों के नेता होने का दावा जरूर कर रहे है मगर कबीलों को लेकर कहाँ जाएंगे यह खुद को ही पता नहीं है।दिल्ली की तरफ कुछ करने की न सोच है और न कोई विचारधारा!कुछ हासिल करने के बजाय बचाने के प्रयास में ही निपट रहे है।आपस मे कोई तालमेल नहीं है!

इतना बड़ा देश है,हजारों पार्टियां है,लाखों नेता है मगर एक-एक कर बिकते इन उपक्रमों के खिलाफ कोई जन आंदोलन खड़ा नहीं कर पाया!पिछले छह साल में राष्ट्रीय परिदृश्य व हालातों को देखते हुए इन लोगों को हमेशा सड़कों पर होना चाहिए था!ये मीडिया में दावा कर रहे है कि संविधान बचाओ,लोकतंत्र बचाओ!संविधान डिब्बे में बंद पड़ा है व लोकतंत्र कोई तोता नहीं है कि पिंजरे में दाना देने से सुरक्षित बचा रहेगा!जब सड़के सुनी हो जाती है तो लोकतंत्र का क्षरण होने लग जाता है!जब विपक्ष खामोश हो जाता है तो सत्ताधारी व्यवस्था तानाशाही पर उतर जाती है!

सत्ता ने भेल से शुरुआत करके विपक्ष व जनता के दिमागी लेवल का परीक्षण किया था उसके बाद भारत पेट्रोलियम से लेकर रेल तक हाथ आजमाया!आज हालात इस कदर हो गए कि "जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी"का स्लोगन लिए घूमने वाली एलआईसी जो भारत सरकार को कमाकर देती थी वो खुद सत्ताधारी लुटेरों के आगे जिंदगी की जंग हार गई!सुनने में आ रहा है कि अगला नंबर सेबी का है,मतलब देश का पूरा अर्थतंत्र निजी हाथों में सौंपा जा रहा है।

आज सुबह दो खबरें पढ़ी!एक मे लिखा हुआ था कि सरकार 40हजार करोड़ में राष्ट्रीय राजमार्ग बेचेगी जिस पर 200 टोल नाके लगाकर निजी कंपनियां जनता से वसूली करेगी!दूसरी खबर में एक किसान गलती से फ़ास्ट-टैग से टोल टैक्स वसूले जाने वाली लाइन में चला गया उसे टोलकर्मियों ने पीट-पीटकर मार डाला!जो हालात भविष्य के लिये बनाये जा रहे है वो देश को गंभीर जख्म देने वाले होंगे!

एक गलती 1967 में नक्सलबाड़ी गांव में की गई उसकी सजा 14 राज्य भुगत रहे है!न देश 1991 मे पूंजीवादी अर्थव्यवस्था अपनाने के लायक था और न अब इस तरह भूंगडों की तरह बेचे जा रहे उपक्रमों के बाद परिणाम झेलने लायक होगा।इसी दौर में देश मे 3.15लाख किसानों ने आत्म हत्या कर ली है!

जिस प्रकार आदिवासियों को खदेड़कर निपट लुटेरे प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे है उसी प्रकार किसान यह क्यों न समझे कि देश के विकास के लिए अनिवार्य बताकर हमारी जमीनों का राजमार्गों के लिए अधिग्रहण किया गया वो सरासर झूठ का पुलिंदा था असली मकसद तो जमीने छीनकर लुटेरों को हमारे ऊपर थोपने का ही है!

अगर अब भी जनता सतर्क नहीं हुई व मुर्दा विपक्ष के भरोसे बैठी रही तो देश हाथ से निकल जायेगा और दुबारा हासिल करने के लिए पुरखों की तरह लाखों कुर्बानियां देनी पड़ेगी!बस हवा बिकनी बाकी है,सब जगह पहरेदार बिठा दिए गए है।जिओ के पर्यावरण में सांस लेने का चार्ज ठोकना बाकी है!

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