आर्डर-आर्डर-आर्डर एंड 1करोड़ नक्सली रेडी!

जब वेदांता समूह के स्टील प्लांट के खिलाफ स्थानीय आदिवासी समुदाय लामबंद हुआ और आंदोलन हिंसक होने लगा तो कुछ गैर-सरकारी संगठन इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए।सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में वेदांता समूह के इस प्लांट पर रोक लगाते हुए लिखा "न लोकसभा,न विधानसभा सबसे बड़ी ग्राम सभा।"यह वाक्य एक सामान्य वाक्य लगता हो मगर पांचवी व छट्ठी अनुसूची का सार है।इससे पहले 1969 में रामकृपाल भगत बनाम बिहार स्टेट के मामले में इसी सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में लिखा कि जब तक  राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति से लोक अधिसूचना जारी करके आदिवासी क्षेत्रों में कुछ निर्देश न दें या नियुक्तियां न दें तब तक आदिवासी क्षेत्र में कलेक्टर भी सामान्य नागरिक होगा और इन क्षेत्रों में घूम रहा प्रशासन व पुलिस असंवैधानिक है।जब कार्यपालिका संविधान को लागू करने में आनाकानी करे तो लोग सुप्रीम कोर्ट से संविधान लागू करवाने की मांग करते है व पहले के मामलों में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को रक्षार्थ फैसले भी दिए गए मगर इस फैसले से 14राज्यों के आदिवासी समुदाय को गहरी निराशा हुई है और आदिवासी समुदाय मोदी सरकार पर आरोप लगा रहा है कि सरकार ने कोर्ट में ठीक से पैरवी नहीं की।यह काफी हद तक सही प्रतीत होता जब इस मामले की सुनवाई की पूरी प्रक्रिया देखी जाएं तो सुनवाई के दौरान कई दफा सरकारी वकील अनुपस्थित रहे है।

आदिवासी समुदाय के संघर्ष व उनकी समस्याओं को समझने के लिए हमे आजादी से पीछे जाना पड़ेगा।आदिवासी समुदाय का संघर्ष अंग्रेजों के आने के बाद शुरू था और 185साल लंबे संघर्ष के बाद भारत सरकार अधिनियम 1935 में अनुच्छेद 91व अनुच्छेद 92में ट्राइबल एरिया के लिए प्रावधान किए गए जिसमे आदिवासी क्षेत्र का शासन,न्याय आदि का अधिकार खुद आदिवासी समुदाय को दिया गया था।इस मामले में पूना पैक्ट 1932 भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।पूना पैक्ट 1932 में अनुसूचित क्षेत्रों अर्थात ट्राइबल क्षेत्रों के चुनाव संबंधी कोई चर्चा नहीं की गई इसलिए इन क्षेत्रों में सामान्य चुनाव प्रक्रिया अपना ली गई थी इसलिए आदिवासी समाज के नेता चुनाव तो सामान्य प्रक्रिया से लड़ते है मगर दावा आदिवासी हितों की रखवाली का करते है और इसी से समस्या ज्यादा उलझती जाती है।

भारत सरकार अधिनियम 1935 के सेक्शन 311में भारत को 3क्षेत्रों में बांटा गया है
1.भारत
2.भारत का राज्य क्षेत्र
3.ट्राइबल एरिया अर्थात आदिवासी क्षेत्र

आजादी के बाद संविधान की पहली अनुसूची में भारत व भारत के राज्यक्षेत्र को डाला गया और ट्राइबल एरिया की धारा 91 व 92 को घुमाकर संविधान के अनुच्छेद 244(2) में 4 राज्य व 244(1)में 10राज्य अर्थात  5वीं व 6वीं अनुसूची में डाला गया।6वीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्र के राज्यों को डाला गया जो समय समय पर नए राज्य बनने के साथ ही अब संख्या में 10 है।आंध्र प्रदेश,तेलंगाना,झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र, गुजरात,राजस्थान,बिहार व हिमाचल प्रदेश आते है।5वीं अनुसूची में 4राज्यों को ट्राइबल एरिया बताकर डाला गया।

समस्या बस यहीं से खड़ी हुई है।ट्राइबल एरिया के अधिकारों से वंचित करने के लिए इन आदिवासी क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र के रूप में घोषित करके सामान्य प्रशासन के हवाले कर दिया गया।भारत सरकार अधिनियम 1935 के हिसाब से ट्राइबल एरिया में IPC व CRPC लागू नहीं होते है इससे बचने के लिए यह खेल खेला गया और पुलिस-प्रशासन को बाहरी लोगों की ढाल बनाकर आदिवासी क्षेत्रों में भेज दिया गया।

संविधान के अनुच्छेद 13(3)भी आदिवासी समाज को इस मामले में संरक्षण प्रदान करता है।तमाम उलझनों के बावजूद माना जाना चाहिए कि पांचवीं व छठी अनुसूची संविधान के अंदर एक बहुत बड़ी आबादी का अपना रखवाला संविधान है।पांचवी अनुसूची के पैरा 5(1) के तहत राष्ट्रपति की अनुमति से राज्यपाल जो लोक अधिसूचना जारी करते है उनके अलावा न संसद विशेष छेड़छाड़ कर सकती और न विधानसभा।पांचवी अनुसूची के अनुच्छेद 244(1)में शेड्यूल्ड एरिया व ट्राइबल एरिया के प्रशासन व नियंत्रण के बारे में बताया गया है जिसमे इन क्षेत्रों की संस्कृति से लेकर प्राचीन न्याय व्यवस्था व अपने शासन को मान्यता दी गई व इनसे बिना ग्राम सभा की सहमति से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।

पेसा कानून 1996की धारा 4(0)के तहत हर राज्य में 20सदस्यों की एक स्वायतशासी परिषद का गठन करना था जिसमे 15विधानसभा के लिए चुने गए आदिवासी समाज के विधायक सदस्य होंगे मगर एक भी राज्य में या तो इस परिषद का गठन ही नहीं हुआ या गठन हुआ तो कोई मीटिंग नहीं हुई!संविधान के अनुच्छेद 275के तहत आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए एक केंद्रीय कोष बनाना था मगर वो कोष कहाँ खो गया किसी को कुछ पता नहीं है।

इन तमाम प्रावधानों से यह साबित होता है कि सामान्य प्रशासन इन आदिवासी क्षेत्रों में लागू नहीं होते है।जब कानून-व्यवस्था से संबंधित मसला उठता है तो सियासतदां, हुक्मरान व न्यायपालिका एक सुर में बोलते है कि संविधान सर्वोपरि है तो मेरा सवाल यह है कि आजादी के 71सालों में ये आदिवासी लोगों के संवैधानिक प्रावधान लागू क्यों नहीं हुए?क्या न्यायपालिका ने 13लाख लोगों को जल,जंगल,छोड़ने का आदेश देते समय इन प्रावधानों को लागू न कर पाने की कार्यपालिका की व लागू न करवा पाने की खुद की नाकामी का विश्लेषण किया है?

1967में पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से चारू मजूमदार व कान्हू सान्याल के नेतृत्व में भूमि से गरीब लोगों को उजाड़ने से शुरू हुआ एक आंदोलन कैसे इन पांचवी व छठी अनुसूची में शामिल लगभग 14 राज्यों में फैल गया उसका विश्लेषण कभी हुक्मरानों ने बैठकर किया है!मानते है इन क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों का अकूत भंडार है और उसका दोहन देश के विकास के लिए जरूरी है मगर उनके लिए यह जरूरी तो नहीं कि दिल्ली से कलेक्टर/आईपीएस व पैरामिलिट्री फ़ोर्स भेजकर स्थानीय आदिवासी लोगों को बंदूक के दम पर खदेड़ दिया जाए और गुजरात,राजस्थान या हरियाणा के पूंजीपतियों को जमीन सौंप दी जाए!

क्या जो लड़ाई आदिवासी लोगों ने 185सालों तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी और संवैधानिक प्रावधान हासिल करके अर्जित की उनके साथ आजादी के बाद हमने न्याय किया?1947से ठीक 20साल बाद 1967 में नक्सलबाड़ी गांव में जो 20सालो की दिशा देखकर गुस्सा फूटा था उससे हमने सबक क्यों नहीं लिया?यह आग फैलती गई और सत्ता अपने ही नागरिकों के खिलाफ जंग लड़ती रही।जो संवैधानिक प्रावधान लागू करने थे वो ठंडे बस्ते में डाल दिये और पूंजीपतियों के आगे अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियां उन क्षेत्रों में भेज दी जहां लोग हजारों सालों से जल,जंगल और जमीन के मालिक थे।

गुजरात से आदिवासी समाज के विधायक छोटुभाई वसावा ने एक कहानी शेयर की है जिसे पढ़कर आप समझ सकते है कि यह संघर्ष किस मोड़ पर खड़ा है!

एक बार एक आदिवासी की ज़मीन किसी दबंग ने हड़प ली|आदिवासी अदालत में गया|
●जज साहब ने रिश्वत खाकर आदिवासी की ज़मीन छीनने वाले दबंग के पक्ष में फैसला दे दिया|
◆आदिवासी अदालत में हार गया|अगले दिन आदिवासी एक झोला लेकर अदालत पहुंचा|
●जज साहब ने आदिवासी को देख कर कहा अरे तुम्हारे मामले का फैसला तो कल हो गया जाओ अपने वकील से फैसले की नकल ले लो|
◆आदिवासी ने कहा साब कल फैसला हुआ था इन्साफ नहीं हुआ, मैं इन्साफ लेकर आया हूँ|
●जज साहब ने कहा क्या मतलब?
आदिवासी ने झोले से उस दबंग का कटा हुआ सर निकाल कर जज की टेबल पर रख दिया और बोला आपने कल फैसला दिया था मैंने इन्साफ कर दिया|
आदिवासी को आपकी दलीलें समझ नहीं आती|
●आदिवासी को इन्साफ का अच्छे से पता है
इन्साफ यह है कि आदिवासी जंगल में पैदा हुआ है
और आदिवासी को जंगल से आप किसी भी फैसले से नहीं निकाल सकते
◆आप अपना फैसला अपने पास रखिये
आदिवासी के पास इन्साफ है जब आदिवासी आपसे लडेगा
●मैं आदिवासी की तरफ से आपसे लड़ने आऊँगा
अगर आप इन्साफ नहीं समझते
◆तो आपके लम्बे चोगे और मोटी मोटी कानून की किताबें हमारे लिये दो कौड़ी की हैं|
●देखते हैं किस माई के लाल में दम है जो आदिवासियों को जंगल से बाहर निकालेगा
◆एक एक पेड़ और एक इंच ज़मीन के लिए लड़ाई होगी
आप इस देश के आदिवासियों को जंगल से निकाल सकते हैं आपने सोच भी कैसे लिया ?

प्रेमाराम सियाग

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