आस्था का राजनैतिक भ्रम!

1922 मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने तुर्की में लोकतंत्र की नींव रखी।24घंटे के भीतर खलीफा को देश निकाला दे दिया।मौलानाओं को मस्जिदों तक सीमित कर दिया।सुल्तान की सारी प्रॉपर्टी को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया!

मुल्लाओं के विरोध को दरकिनार करते हुए कहा कि राजा को जनता चुनेगी कोई सुल्तान या खलीफा नहीं!सारे धार्मिक मदरसों पर ताले लगा दिए!लड़कियों के लिए स्कूल खोले।पता है खलीफा के खिलाफ भारत के मुल्लाओं ने खिलाफत आंदोलन चलाया था व महात्मा गांधी ने उनको समर्थन दिया था।

मुस्तफा कमाल ने सबको दरकिनार करते हुए बुर्के पर पाबंदी लगा दी थी।आज तुर्की के स्कूल-कॉलेज देखते है तो लगता है किसी समृद्ध यूरोपियन देश मे आ गए है!ऐसा संभव हुआ एक दूरदर्शी सोच के नेता की जिद्द से!

महात्मा गांधी ने भारत के मुसलमानों को यह समझाने का प्रयास नहीं किया था आगे दुनियाँ किस तरफ जाएगी?भारत के मुसलमानों को यह नहीं समझाया कि तुम्हारा भविष्य कट्टरता में नहीं मुस्तफा के कमाल में है!विरोध के बजाय उनसे सीख लेने की जरूरत है!महात्मा गांधी विशेष समूह के हाथों में सत्ता चाहते थे!यह कहना कठिन है कि उस विशेष समूह को सत्ता सौंपकर गांधीजी चाहते क्या थे!

भारत के मुसलमानों को मुल्लावाद से बाहर निकलना पड़ेगा!भारत मे आरएसएस के चंगुल में जो बहुसंख्यक समुदाय फंसा है उसकी जिम्मेदार कांग्रेस है मगर कांग्रेस ने यह बवंडर मुसलमानों का उपयोग करते हुए खड़ा करने में मदद की है!भारत के मुसलमानों को गांधी द्वारा तैयार नेतृत्व ने मात्र वोट बैंक समझा और कट्टरता बढ़ाने वाले मौलानाओं को आगे बढ़ाती रही!

धर्म कभी हिंसक नहीं होते है बल्कि धर्मों का उपयोग करने वाले धर्मखोर व राजनेता उनको हिंसक बनाते है!हिंसा कट्टरता से पैदा होती है और कट्टरता राजनेताओं से वाया मुल्लों से आती है!भारत के मुसलमानों को कट्टरता की नहीं रोजगार,शिक्षा व गुरबत से मुक्ति की जरूरत है।

जिस मुल्लावाद से मुस्तफा कमाल ने 1922 में ऑटोमन साम्राज्य खत्म करके तुर्की को मुक्ति दे दी थी उसी मुल्लावाद की तरफ भारत का हिन्दू लौट रहा है!एक तरफ भारत के मुल्ला बुर्के व शरीयत को देश व अपने समाज से ऊपर बताने में लगा है तो दूसरी तरफ हिंदुत्व के झंडाबरदार लोकतंत्र व संविधान को नोचकर खाने को टूट पड़ा है!पूरी सत्ता पर पंडे-पुरोहितों का कब्जा हो गया है!तिरंगा शो पीस व दोमुंहा भगवा झंडा इनका आदर्श है!

मुसलमानों के पास मुल्लावाद से उभरने के पर्याप्त उदाहरण है!दुर्भाग्य से भारत के हिंदुओं के पास ऐसे उदाहरण नहीं है!भारत के हिंदुओं को समझने के लिए सिर्फ खुद का इतिहास है।अगर तार्किक तरीके से इतिहास को पढ़ लिया जाएं तो भविष्य के लिए सबक लिया जा सकता है।

ऐसा नहीं है कि पश्चिम के देशों ने ऐसे दंश नहीं झेले हो!लेकिन उन्होंने 16सदी में ही पादरियों को चर्च में बंद करना शुरू कर दिया था और यह भसड़ मचाने के लिए वेटिकन के रूप में एक निश्चित एरिया दे दिया!सत्ता से धर्म की बेदखली ही जनता के उद्धार का रास्ता खोलती है!

दुर्भाग्य से भारत मे सत्ता धर्म को दरकिनार नहीं कर पाई क्योंकि सत्ता सदैव साम्प्रदायिक बनी रही!प्रथम राष्ट्रपति पंडों के चरणों मे रहते थे तो वैज्ञानिक राष्ट्रपति कलाम ने पंडों के चरणों मे बैठने से कभी गुरेज नहीं किया!भारत के प्रधानमंत्री से लेकर पार्षद तक मंदिरों-मस्जिदों में भटकते नजर आते है!मुसलमानों को हिन्दू तो चौधरी छोटूराम जैसा चाहिए मगर मुसलमान बुर्के की हिफाजत के लिए लड़ने वाला ओवैसी जैसा चाहिए!हिंदुओ को मुसलमान तो अब्दुल कलाम जैसा चाहिए मगर हिन्दू प्रज्ञा ठाकुर या गोडसे जैसा चाहिए!

दुर्भाग्य से दोनों के रास्ते गलत है!

काश आस्था को लोग दानपात्र के बजाय गरीब के पेट से जोड़ देते तो सारा झगड़ा ही ख़त्म था....

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