गांधी-गोडसे से लेकर गोपाल तक का चक्रव्यूह!

मैंने आरएसएस के बारे में खूब लिखा है व यकीन मानिए जब तक जिंदा हूँ तब तक लिखता जाऊंगा।अगर मेरे लिखने से 5-7 बच्चे भी इस चरमपंथी गिरोह के जहर से बच जाएंगे तो मेरा लिखा सफल मान लूंगा।

मैंने हमेशा लिखा है आरएसएस का हिंदुओं से कोई मतलब नहीं है।यह शुद्ध रूप से ब्राह्मणवादी संगठन है और ब्राह्मणवाद मानवता पर सबसे बड़ा कलंक है।यहूदी नस्ल व थाईलैंडी आदर्श की खिचड़ी यूँ ही नहीं पकाई गई है।परशुराम जैसे माँ के हत्यारों को आदर्श रूपी पूजने वाले लोग अगर हिंदुओं के घट-घट के राम को निकालकर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाए श्रीराम को सड़कों पर पोस्टर बॉय बनाकर युवाओं के दिमाग मे अवतरित करने लगे तो ये ही परिणाम सामने आने थे!

गोडसे द्वारा गांधी की हत्या के बाद जब सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया तो वो आजाद भारत का सबसे बड़ा फैसला था मगर पंडित नेहरू ने जो प्रतिबंध हटाने की गलती की थी उस समय क्या पता था कि भविष्य के भारत के लिए नासूर बन जायेगी!

गोडसे से गोपाल तक के सफर ने इस देश की जनता को इतना बरगलाया/बर्बाद किया कि इनका इतिहास पढ़ा जाएं तो समझ मे आता है कि कैसे आरएसएस ने सुनहरे भविष्य की तरफ बढ़ते भारत के कदमों में नफरतों की बेड़ियां डालकर आगे बढ़ने की गति शिथिल कर दी थी।

26जनवरी 2013 को गणतंत्र दिवस पर गुजरात के मुख्यमंत्री द्वारा दिये उस भाषण को याद कीजिये जिसमे अपने देश के प्रधानमंत्री की खिलाफत की गई थी!उस समय मित्र व वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार ने कहा था कि यह दिन भारतीय राजनीति व सत्ता के लिए बहुत बड़े परिवर्तन का दिन है।आरएसएस का प्रशिक्षित कार्यकर्ता आज सारी मर्यादाएं लांघ चुका है और आगे संसदीय, सभ्य,मर्यादा आदि मात्र मजाकिया शब्द होकर रह जाएंगे!

उसके बाद पूरे देश ने देखा कि किस तरह सियासत बदली व आज किस मोड़ पर खड़े है!प्रधानमंत्री से लेकर इनके छुटभैये नेता तक की भाषा का स्तर देखिये!यह देश ऐसा नहीं था मगर यथा राजा तथा प्रजा के उसूलों पर चल पड़ा है!

आरएसएस कोई भारत का सुपर पावर नहीं है!कांग्रेस की राजनीति का विपक्ष यही तैयार करता रहा है।आजादी के बाद का आरएसएस,हिन्दू महासभा,जनसंघ से लेकर भाजपा तक हर जगह इनको खड़ा करने में कांग्रेस ने अतुलनीय योगदान दिया है।कांग्रेस ने मुसलमानों को इनका डर दिखाकर असली विपक्ष खड़ा होने से रोके रखा था।मुसलमानों को सहूलियतें देने के बजाय यह समझाया गया कि चुपचाप हमे वोट देते रहो नहीं तो आरएसएस खा जायेगा!

अगर 1977 में कांग्रेस की मृत्यु शैया पर आरएसएस के अलावा कोई तीसरा विकल्प मजबूती के साथ सत्ता पर काबिज हो जाता तो कांग्रेस व आरएसएस दोनों की राजनीति खत्म हो जाती मगर कांग्रेस-आरएसएस के गठजोड़ ने मिलकर असली विपक्ष की हत्या कर दी।1989 में भी यही दोहराया गया!1996,1997,1998 में भी यही जारी रहा।

दशकों तक कांग्रेस ने आरएसएस का डर दिखाकर सत्ता का भोग किया व अब आरएसएस मुसलमानों का डर दिखाकर सत्ता सुख भोग रही है!देश को असली मुद्दों पर आने के लिए कांग्रेस या आरएसएस दोनों में से एक को खत्म करना होगा!

क्रोनोलॉजी समझिए।पूरा देश आरएसएस के खिलाफ सड़कों पर है मगर कांग्रेस कहीं नहीं है।पता है कि आरएसएस सत्ता से हटा तो हमारा ही नंबर है!दोनों के गठबंधन की सलामती में ही भारत की दुर्गति है!

आज जामिया के गोलीकांड को लेकर ज्यादा विचलित मत होइए!जितना जहर बनाने में मेहनत आरएसएस करता है उससे ज्यादा जहर को फैलाने में कांग्रेस मेहनत करती है!बेशक आज सत्ता में आरएसएस है और संघर्ष की प्राथमिकता में है मगर यह ख्याल जरूर रखा जाना चाहिए कि इसका फायदा कांग्रेस न उठा पाएं!

दिल्ली में गोली चली व एक लड़के को लगी इसलिए मीडिया व सियासत ने इसे उठाकर गोडसे बनाम गांधी बना दिया मगर याद रखिये कांग्रेस के राज में करोड़ों आदिवासियों को उजाड़ा गया,तुम्हारी माँ बहनों की अस्मत लूटी गई व आज भी यह कार्य बीजेपी राज में बदस्तूर जारी है!

पूर्णियां भागलपुर के दंगे हुए थे तब कांग्रेस सरकार में थी,1984 में सिक्खों के कत्ले-आम में कांग्रेस शामिल थी,मुज्जफरनगर दंगों के समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी मगर कोई एक्शन नहीं लिया!

गाली, गोली,दंगा आरएसएस का ब्रह्मास्त्र है और इसका उपयोग कांग्रेस ने जमकर किया है और आज बीजेपी कर रही है!देश के 85%लोगों अर्थात किसान-कमेरों को एकजुट होकर इनके षड्यंत्रों को बेनकाब करके सत्ता पर कब्जा करना होगा।अगर इससे जुदा कोई विचार है तो गोडसे-गोपाल के चक्रव्यूह में फंसकर अपने बच्चों की बर्बादी के सिवाय कोई चारा नहीं है!

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