गोरे जाएंगे और काले आ जाएंगे-भगतसिंह

आजादी के आंदोलन को जब पढ़ा तो ऐसा लग रहा था असल मे वो आजादी की लड़ाई थी नहीं बल्कि लड़ाई यह थी कि गौरों की अनुपस्थिति में कुर्सियों पर कब्जा किसका हो?

जब भी ज्ञात भारतीय इतिहास की घटना पढ़ता हूँ तो लगता है कि मैं वर्तमान पढ़ रहा हूँ।क्या बदला है?राजाओं की सेना के पैरों तले गांव के गांव उस समय भी बर्बाद हो रहे थे और आज भी पाकिस्तान का भय दिखाकर सीमावर्ती गांव के खेतों को उजाड़ दिया जाता है,संसद में बैठे लोग भू-अधिग्रहण के नाम पर,शहरीकरण के नाम पर गांव के गांव उजाड़ रहे है!

उस समय भी पाखंड व अंधविश्वास में फंसाकर आम लोगों को लूटा जाता था और आज भी लूटा जा रहा है।

उस समय भी महाजन-सूदखोर आमजन का खून चूसने वाली झोंक थे और आज इस संगठित गिरोह को बैंकिंग कहा जा रहा है!

राजा गए,अंग्रेज आये,लोकतंत्र आया मगर क्या बदला?

शिक्षा व चिकित्सा उस समय भी निजी शिक्षकों-राजवैदयों के माध्यम से वर्ग-विशेष के लिए उपलब्ध थे और अब उनकी जगह कान्वेंट स्कूल-फाइव स्टार अस्पतालों ने ले ली!आमजन के हिस्से क्या आया?

भुखमरी,बेबसी,लाचारी इस देश की सदियों पुरानी संस्कृति रही है और आज भी हमे नहीं कचौटती है क्योंकि हम मुर्दा कौम है!

भगतसिंह का परिवार आर्यसमाजी था मगर भगतसिंह ने अपने घर,परिवार,समाज,भारत की सोच के खिलाफ बगावत कर दी थी!

भगतसिंह ने कहा था कि जब तक भारत के युवाओं की सोच नहीं बदल जाती तब तक सत्ता परिवर्तन होते रहेंगे मगर आमजन के जीवन मे कोई बदलाव नहीं आ सकेगा!

भगतसिंह ने ईश्वर के अस्तित्व को नकारते हुए कहा था कि जब अपराध होते है तो ईश्वर कहाँ होता है!कई सवाल खड़े किए!आज भी हम पूछ रहे है कि वहशी दरिंदे मासूम बच्चियों को नोच रहे होते है उस समय ईश्वर कहाँ गायब हो जाता है?

आज करोड़ों लोग देश मे भूखे है,कुपोषित है,इलाज के अभाव में है,अनपढ़ है और दूसरी तरफ काले अंग्रेजों ने करोड़ों लोगों की लाशों पर मुल्क के अंदर अपना नया,चमकता मुल्क बना लिया है।

एक तरफ बेबस,लाचार रेंगता भारत है तो दूसरी तरफ इन काले अंग्रेजों का शाइनिंग इंडिया है,एकतरफ झुग्गियों में भूख से तड़पता भारत है तो दूसरी तरफ बहुमंजिला इमारतों में चमकता इंडिया!एक तरफ 100रुपये की दिहाड़ी को तड़पता भारत है तो दूसरी तरफ बुलियन पर बैठकर 5ट्रिलियन की तरफ भागता इंडिया!

आज भगतसिंह हमारे बीच नहीं है मगर उनके विचार हमारे बीच है।आज शारीरिक रूप से युवा भारत है मगर मानसिक रूप से अपंग भारत है और इस अपंगता का इलाज भगतसिंह है।

भाई धर्मवीर जाखड़ जैसे युवा ही भगतसिंह के असली वारिस है,इनके जीवन मे भगतसिंह के विचार जिंदा है इसलिये झुग्गियों के बच्चों के हाथों से मांगने का कटोरा हटाकर कलम पकड़ा रहे है।

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